SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 272
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 39 ) पुण्य पाप दोय सम करी जाणो, भेद म जाणो कोउ; जिम बेडी कंचन लोढानी, बंधन रूपी दोउं संतो० ४२ नल बल जल जिम देखो संतो, उंचा चढत आकाश; पाछा ढलि भूमि पडे तिम, जाणो पुण्य प्रकाश. संतो० ४३ जिम साणसी लोहनी रे, क्षण पाणी क्षण आग; पाप पुण्यनो इण विध निश्चे, फल जाणो महा भाग. संतो०४४ कंप रोगमें वर्तमान दुःख, अकरमांहि आगामी; इणविध दोउ दुःखना कारण, भाखे अंतरजामी. संतो. ४५ कोउ कुपमें पडि मुवे जिम, कोउ गिरि जंपा खाय; मरण बे सरखा जाणिये पण, भेद दोउ कहेवाय. संतो. ४६ पुण्य पाप पुद्गल दशा इम, जे जाणे सम तूलः शुभ किरिया फल नवि चाहे ए, जाण अध्यातम गल.सं. ४७ शुभ किरिया आचरण आचरे, धरे नं ममता भाव; नुतन बंध होय नहीं इण विध, प्रथम अरि सिर घाव. संतो. ४८ वार अनंत चूकिया वेतन, इण अवसर मत चूक; मार नीसाना मोहरायकी, छातीमें मत उकै. संतो०४९ नदी घोल पाषाण न्याय कर, दुर्लभ अवसर पायो; चितामणि तज काच शकल सम, पुद्गलथी लोभायो.सं. ५० १ एक जातनो रोग. २ भविष्य. ३ भूल.
SR No.005739
Book TitlePadyavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay, Kunvarji Anandji
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1995
Total Pages376
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy