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________________ ( 35 ) चिदानंद आपको सरूप विसराय एसें, सांसारिक जीवको बिरुद मोटो लीनो हे. ५० शिव सुखकाज धर्म कह्यो जिनराज देव, ताके चार भेद ज्युं आचारादिक जाणीए; दान शील तप भाव हे निमित्तको लिखाव, निहेचे ववहारथी दुविध मन आणीए; स्याद्वादरूप अति परम अनूप एसो, दयारस कूप परतक्ष पहचाणीए; चिदानंद शंकितादि दूषण निवार सहु, धरम प्रतीत गाढी चित्तमांहि ठाणी. ५१ हंसको सुभाव धार कीनो गुण अंगीकार, यन्नंग संभाव एक ध्यानसें सुणीजीये; धारके समीरको सुभाव ज्युं सुगंध याकी, ठोरे ठोर ज्ञातावृंदे में प्रकाश कीजीये; पर उपगार गुणवंत विनति हमारी, हिरदे में धार याकुं थिर करी दीजीये, १ चार आचार. - ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार ते वीर्याचार, २ निश्चय. ३ शंका वरोरे. ४ स्थापीएधारण करीए. १ सर्प, २ स्वभाव. १द पवननो ठेकाणे ठेकाणे. स
SR No.005739
Book TitlePadyavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay, Kunvarji Anandji
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1995
Total Pages376
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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