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________________ ( २६ ) छांडके कुसंगत सुसंगथी सनेह कीजें, गुण ग्रही लीजे अवगुण दृष्टि टारके भेदज्ञान पाया जोग ज्वाला करी भिन्न कीजे, कनक उपलकुं विवेक खार डारके; ज्ञानी जो मिले तो ज्ञानध्यानको विचार कीजे, मिले जो अज्ञानी तो रहीजे मौन धारके; चिदानंद तत्त्व एही आतम विचार कीजे, अंतर सकल. परमाद भाव गोरके. ४३ जूठो पक्ष ताणे, विना तत्त्वकी पिछाण करे, मोक्ष जाय इस अवतार आय लीनो हे; भये हे पाषाण भगवान शिवजी कहास, बिदा (विधु) कोप करके सराप जब दीनो है; तिहुँ लोकमांहि शिवलिंगको विस्तार भयो, वैज्री वज्र करी ताकुं खंड खंड कीनो हे; चिदानंद एसो मनमत धार मिथ्यामति, मोक्षमार्ग जाण्या विना मिथ्यामति भीनो हे. ४४ १ माटीने. २ क्षार. सुवर्णना अर्थी जेम क्षार मूकीने कनक अने पथ्थरने जुदा पाडे छे तेम भेदज्ञान पाम्या त्यारे घोगरूपी ज्वाला प्रगटावी विवेकरूप क्षार मूकी आत्मा साथे मळेला कर्मोने छूटा पाडी दईए. ३ गाळी दईने. १ इश्वरपणे. २ ब्रह्माए. ३ श्राप. ४ इन्द्रे. ५ असत्यमत. ६ लीन रहे छे.
SR No.005739
Book TitlePadyavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay, Kunvarji Anandji
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1995
Total Pages376
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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