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________________ ( ११ ) संसार असार भयो जिनकुं, मेरवेको कहा तिनकुं डर हे; तो लोक देखा कहा ज्युं कहो, जिनके हिये अंतर थित रहे. जिने मुंड मुंडाय के जोग लीयो, तिनके शिर कोन रही करें हे; मन हाथ सदा जिनकुं तिनके, घर हि वन हे वन हि घर हे. १६ शुभ संवेर भाव सदा वरते, मन आश्रवकेरो कहा डर हे १; सहु वादविवाद विसार अपार, धरे समता जे इसो नर हे. निज शुद्ध समाधिमें लीन रहे, गुरु ज्ञानको जाकुं द्वियो वरं हे; मन हाथ सदा जिनकुं तिनके, घर हि वन हे वन हि घर हे. १७ ममता लवलेश नहि जिनके चित्त, छार समान सहु धन हे; १ मरवानी. २ हृदयमां. ३ आत्मस्वरूपनी स्थिति. ४ वेरो. ५ कबजे छे. १ प्रावता कर्मने रोकनार. २ कर्मने. ३ वरदान. ४ धूळ.
SR No.005739
Book TitlePadyavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay, Kunvarji Anandji
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1995
Total Pages376
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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