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संसार असार भयो जिनकुं, मेरवेको कहा तिनकुं डर हे;
तो लोक देखा कहा ज्युं कहो, जिनके हिये अंतर थित रहे. जिने मुंड मुंडाय के जोग लीयो, तिनके शिर कोन रही करें हे; मन हाथ सदा जिनकुं तिनके, घर हि वन हे वन हि घर हे. १६
शुभ संवेर भाव सदा वरते, मन आश्रवकेरो कहा डर हे १; सहु वादविवाद विसार अपार, धरे समता जे इसो नर हे. निज शुद्ध समाधिमें लीन रहे, गुरु ज्ञानको जाकुं द्वियो वरं हे; मन हाथ सदा जिनकुं तिनके, घर हि वन हे वन हि घर हे. १७
ममता लवलेश नहि जिनके चित्त, छार समान सहु धन हे;
१ मरवानी. २ हृदयमां. ३ आत्मस्वरूपनी स्थिति. ४ वेरो. ५ कबजे छे.
१ प्रावता कर्मने रोकनार. २ कर्मने. ३ वरदान. ४ धूळ.