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________________ ( ) पुन्य विना दुसरो न होयगो सखाइ तब हाथ मल मल माखी जिम पसतावेगो. ५ अगम अपार निज संगति संभार नर मोहकुं विडार आप आप खोज लीजीये; अचळ अखंड अलिप्त ब्रहमंड मांहि, व्यापक स्वरूप ताको अनुभव कीजीए. खीर नीरें जिम पुद्गल संग एकीभूत, अंतर सुदृष्टि खोज ताको लव लीजीये; धार एसी रीत ही ए परम पुनित इम, चिदानंद प्यारे अनुभवरस पीजीये. ६ आयके अचानक कृतांत ज्युं गहेगो तोहे, तिहां तो सखाइ कोउ दुसरो न होवेगो; धरम विना तो ओर सकळ कुटुंब मिली, जानके परेतों कोइ सुपने न जोवेगो. लर्टेक सलाम के सखाइ विना अंत समे, नेणमांहि नीर भर भर अति रोवेगो; • १ संभाळ. २ विदार. ३ शोधी. ४ पाणी. ५ एकरूप. ६ अंशमात्र. ७ पवित्र. १ काळ. २ रक्षक. ३ परेतां - प्रेन थयेल - मरण पामेल जाणीने. ४ लटक सलामवाली सखाइते (जुहार ) प्रणाम मित्र - धर्म.
SR No.005739
Book TitlePadyavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay, Kunvarji Anandji
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1995
Total Pages376
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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