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________________ अंड : २ ले ૩૯૫ આપણા જીવનની આસપાસ સયમરૂપી કિનારો નહિ હોય તા જીવન ગમે ત્યાં વેડફાઈ જશે ને નાશ પામશે. શીયળ ઉપર સતી સીતાનું દૃષ્ટાંતઃ दानव स्त्रियाँ सीताजीके पास दौड पडी । उन्होंने कहा, “महासतीजी ! सर्फ आपकी जिदके कारण यह संग्राम हुआ !. क्या आपको मालुम है कि महाराजा रावण को अपनी देह अर्पण न कर देनेसे जो युद्ध होगा उसमें लाखों स्त्रियाँ अपने पतिदेवोंको गवांकर विधवा हो जायेगी : " लाखों माताएँ अपने बेटे को गवांकर पुत्र हीन बन जायेगी ! हाय ! क्या आप वैधव्यके यह दुःख उनके शिर थापना चाहती है : लाखों जनेताओंको निःसंतान करेंगी ! इससे तो आप अपनी देह ..... "शांतम् पापम् ! शांतम् पापम् ! सीताजीने गंभीर स्वर में कहा, मैं आपसे पूछती हुँ कि अगर मैं अपनी देह रावण को सौंपूंगी तो इस आर्य देशमें भविष्य में होनेवाली करोड़ो स्त्रीयाँ मेरे दृष्टांत से प्रेरीत होकर, परपुरुषको अपनी देह सोंपकर कुल्टा वन जायेंगी इसका क्या ?" “इससे लाखोंके वैधव्य और पुत्र वियोगकी दुःख प्राप्तिका विकल्प बेहतर नहीं है क्या ? आपही बताइये कि लाखों विधवाएँ. बने इससे करोडों कुलटाएँ बने यह ज्यादा बुरा नहीं है ?" दैत्य स्त्रीयाँ मौन होकर चली गई ! (વિકાશ પરિચય પુસ્તકમાંથી સાભાર) મુનિશ્રી ચન્દ્રશેખરવિજયજી
SR No.005737
Book TitleSadbodh yane Dharmnu Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanji Shamji Satiya
PublisherHansraj Ghelabhai Satiya
Publication Year1980
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size24 MB
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