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________________ [] प्रतिष्ठित और सारस्वत-भक्त था । राजकीय दृष्टि से सिवा भी, कविके पूर्वजोंका गुजर-नरेशों के साथ खास विशेष प्रकार का सम्बन्ध था और विजयपाल तथा उसके पिता-प्रपितादि 'राजकवि' थे । यह कुल जातिसे प्राग्वाट (पोरवाड) वैश्य था और धर्म इसका श्वेताम्बर-जन था। अण. हिलपुरमें, इस कुलकी ओर से स्वतंत्र जैनमन्दिर और जैन साधुओं के ठहरने के लिये 'वसति' (जैन उपाश्रय) आदि बने हुओ थे । इनके उपाश्रयमें बहुत बडे बडे जैन विद्वान् मुनि आकर निवास करते थे। कुछ ग्रन्थों के अन्तमें, उनके, इनके उपाश्रय में बने जानेका स्मरणीय उल्लेख भी किया गया हमारे देखने में आया है। इससे जाना जाता है कि यह कुल श्रीमान्, विद्वान्, राजमान्य और जनसम्मान्य था । .. विजयपालके पिताका नाम, जैसा कि स्वयं उसने इस प्रबन्ध में उल्लिखित किया है, सिद्धपाल था । वह भी महाकवि था । इसकी स्वतंत्र कृति अभीतक हमें कोई श्रुत या ज्ञात हुई नहीं। सोमप्रभसूरि नाम के एक बहुत अच्छे जैन विद्वान् हो गये हैं । शतार्थी काव्य, सूक्तमुक्तावली, सुमतिनाथचरित्र, कुमारपालप्रतिबोध आदि कई संस्कृत-प्राकृतग्रंथ उनके लिखे हुओ मिलते हैं। इनमें से पिछले दो ग्रंथोकी अन्त की प्रशस्तियों में सिद्धपाल का उल्लेख किया हुआ है । ये ग्रन्थ सिद्धपालकी वसति (उपाश्रय) में रहकर उन्होंने रचेथे, ऐसा प्रसङ्ग वर्णित है। सिद्धपाल के पिता का नाम श्रीपाल था । यह सचमुच हि 'महाकवि' था । 'कविराज' या 'कविचक्रवर्ती इसका बिरुद था । प्रभावकचरित्र, प्रबन्धचिन्तामणि, चतुरविंशतिप्रबन्ध, मुद्रितकुमुदचन्द्रप्रकरण और कुमारपाल प्रबन्धादि अनेक ग्रन्थों में इसका वर्णन और नामोल्लेख मिलता है। गुजरातके महामात्य वस्तुपाल, राजपुरोहित, सोमेश्वर, ठक्कुर अरिसिंह आदि जो उत्तम गृहस्थ कवि हो गये है उन सबमें यह उच्चस्थानाधिष्ठित था ।... यह, अणहिलपुर के तत्कालीन महान और प्रतापवान जैन श्वेताम्बर सघ का एक प्रमुख नेता था। स्याद्वाद-रत्नाकर जैसे विशाल और प्रभावशाली तर्कग्रन्थों के प्रणेता प्रखरवादी देवसूरि और विश्वविश्रुतआचार्य हेमचन्द्र का यह अनन्य अनुरागी था ।...... आबू पहाड के देलवाडा नामक स्थानपर विमलसाह का बनवाया हुआ जो जगप्रसिद्ध जैनमन्दिर है उसके रङ्गमण्डपमें, स्थंभ के पास, संगमर्मरको
SR No.005715
Book TitleDropadi Swayamvaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay, Shantiprasad M Pandya
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages90
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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