________________
घ परिशिष्ट
१८७
"
अत्थुग्गह ईहा - वाय-धारणा करणमाणसेहि छहा | अ अडवीसमेअ चउदसहा वीसा व सुआं ॥५ ॥ अक्खर सन्नी सम्म, साइअं खलु सपज्जवसिअ च । . गमिअ अंगपवि, सत्त वि एए सपविक्खा ॥ ६ ॥ पज्जय- अक्खर - पय- संघाया पडिवत्ति तह य अणुओगो । पाहुडपाहुड - पाहुड - वत्थुपुव्वा य ससमासा 119 11 अणुगामि- वड्ढमाणय- पडिवाइयरविहा छहा ओही । रिउमड़ - विउलमई मणनाणं केवलमिगविहाण ं ॥ ८ ॥ एसिं जं आवरण, पडुव्व चक्खुस्स तं तयावरणं ॥ दसणचऊ पण निद्दा, वित्तिसमं दंसणावरणं ॥ ९ ॥ चक्खु - दिट्टि - अचक्खु सेसिंदिय - ओहि केवलेहिं च । दसणमिह सामन्न, तस्सावरण तयं चउहा ॥ १०॥ सुहप डिबोहा निद्दा, निदानिद्दा य दुक्खपडिबोहा | पयला ठिओ विट्ठस्स पयलपयला उ चकमओ ॥ ११ ॥ दिणचितियत्थकरणी, थीणद्धी अद्धच किअद्धबला । महुलित्तखग्गधारालिहणं व दुहा उ वेअणिअं ॥ १२ ॥ ओसन्न सुर- मणु, सायमसायं तु तिरिअ - निरएसु । मज्ज व मोहणीअं, दुविह' द सणचरणमोहा ॥। १३ ।। द' सणमोह, तिविह सम्म मीस तहेव मिच्छत्तं । सुद्ध अद्धविशुद्ध, अविसुद्ध तं हवड़ कमसो || १४ ||
जिअ अजिअ पुण्ण-पावा ssसव संवर-बध-मुक्ख-निज्जरणा जेण सदहड़ तय, समं खइगाइ बहुमेअ || १५॥
-