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...सपाही यात माना परिशिष्ट ]
33७ કાશીના શાસ્ત્રીજી શ્રી ચિનસ્વામીનું નિવેદન, Mahamahopadhyaya Sastraratnakara P. 40 B, Raja Basant Roy Road, Pandit A. Chinnaswami Sastri
Rash Bihari Avenue post, Research professor in
Calcutta 29. Smriti & purana
19 Government Sanskrit College, Calcutta.
हमारा निवेदन जिस समय 'श्री शासन जय पताका' के नाम से प्रकाशित 'तिथिवृद्धि क्षर विषयक व्यवस्थापत्रम्' लिखा गया था, उस समय जैनाचार्य श्रीमत् सागरानन्दसूरिजी के अनुयायी महोदय के द्वारा उपस्थित किये हुओ ही कुछ जैन शास्त्रप्रमाण हमारे समक्ष थे । और जैनाचार्य श्रीमद विजयरामचन्द्र सूरिजी के मन्तव्य के विषय में भी जो कल पं० लाकण झा ने हमको निवेदित किया था, उसी के ऊपर ही हमने विश्वास रक्खा था ।
आज हमारे समक्ष वे सभी जैन शास्त्रप्रमाणो उपस्थित हैं, जिन जैन शास्त्रप्रमाणों को जैनाचार्य श्रीमत्सागरानन्दसूरिजी ने एवं जैनाचार्य श्रीमद् विजयरामचन्द्रसूरिजी ने तिथिक्षयप्रद्धिविषयक विवाद में मध्यस्थ के पद पर नियुक्त वैद्योपाहूव श्री परशुराम शर्मा महोदय के समक्ष उपस्थित किये थे ।
जितने जैन शास्त्रप्रमाण आज हमारे समक्ष उपस्थित हैं उतने जैन शास्त्रप्रमाण अगर उस समय हमारे पास उपस्थित होते, तो श्री शासनजयपताका में जैनाचार्य श्रीमसागरानन्दसूरिजी के मत के समर्थन में और जैनाचार्य श्रीमद् विजयरामचन्द्रसूरिजी के मन्तव्य के एवं उक्त मध्यस्थ महोदय के निर्णयपत्र के विरूद्ध में हमारे तर्फ से जो कुछ भी लिखा गया है, वह हमसे कथमपि न लिखा गया होता, ऐसा हमको उभयपक्षीय जैन शास्त्रप्रमाणों का परीक्षण करने से दृढ प्रतीत हुआ है । और हम अगर वैसा नहीं लिखते, तो हमारे प्रांत अत्यन्त आदर रखने वाले और हमको प्रमाण रूप माननेवाले बहुसंख्य पंडितजनों की जो सम्मतियां जैनाचार्य श्रीमत्सागरानन्दसूरिजी के मत के समर्थन में प्राप्त हुई थी, वह सम्मतियां भी प्राप्त होनी असम्भवित थीं।
उभयपक्षीय जैन शास्त्रप्रमाणों के अवलोकन और अनुशीलन से, हम ऐसे निर्णय पर आये हुवे हैं कि जैनाचार्य श्रीमद् विजयरामचन्द्रसूरिजी ने तिथि क्षयवृद्धि के विषय में जो मन्तव्य प्रगट किया है, वही मन्तव्य प्राचीन जैन शास्त्रों के आधारों से और श्रीजिनागमसम्मत जीत व्यवहार से भी आदरणीय और आचरणीय है । उक्त मध्यस्थ महोदय ने यदि अपने निर्णयपत्र में जैनाचार्य श्रीमद् विजयरामचन्द्रसूरिजी के द्वारा उपस्थित किये गये सारे जैन शास्त्रप्रमाणों का उद्धरण किया होता, तो हम मानते हैं कि उनके निर्णयपत्र के विषय में अंशतोऽपि शंका उपस्थित करने का हम जैसे निष्पक्ष जनों को कोई मौका मिलता ही नहीं । मध्यस्थ महोदय ने वैसा किया होता तो उनके किये हुवे शास्त्राभासत्वं तथा
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