________________
ખગોળ વિજ્ઞાનની હાલની નિદર્શના ઘણે અંશે સમકાલીન હોવાથી આવા ગ્રંથને સર્વકાલીન કેવ સત્ય સારવેવામાં તેને અપૂર્વ સહાય મળશે.
- સાધુજી દર્શનવિજય મહારાજના આ પુણ્ય પરિશ્રમને લીધે બાળ વિજ્ઞાનને તથા ગુજરાતી સાહિત્ય સમૃદ્ધિને तो धर्ममा थये। छ. . સં. ૧૯૮૩ પિષ સુદી ૧૩ ) જીવન ધ સુ त १५-१-२७ . eled.
ग्रंथ भंडार, लेडी हार्डिंज रोड.
माटुंगा-बंबई ता. १७-१-२७ पूज्य दर्शनविजयजी महाराजकी सेवा में. . .
वंदना ! आपकी लिखी हुई पुस्तक “ विश्वरचना प्रबंध " कवि श्रीललितजीने मुजे पढनेके लिए दी, मैंने उसको यह सोचकर रख छोडी कि 'जंबुद्वीप पन्नत्ति'की सारी बातें इसमें लिखी होगी ! वे बातें पढी हुइ है ! कौन व्यर्थको सिरदर्दी करें । - मगर ललितजीके तगाजेने मुजे “विश्वरचना प्रबंध" पढनेके लिए विवश किया। मैंने उसे पढा, पढकर प्रसन्नता हुई। वर्तमानमें मुनिराजोके लिखे हुए ग्रंथोमेंसे आज तक बहुतही कम ऐसा ग्रंथ प्रकाशित हुआ है, जिनको लिखनेमें बहुत परिश्रम किया गया है, गहन अध्ययन किया गया है, और बिममें ऐतिहासिकता एवं बुद्धिबादको स्थान दिया गया है.
बिध्ययन और तर्कबुद्धिको स्थान दे सके ऐसा आपका
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org