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निशाणी १३. भरुचना शेठ अनोपचंद मलुकचंदनुं
भाषण.
सभापतिने नमस्कार. आ देश देशनो मळेलो श्रीसंघ जोइने आनंदित थाउं छु. अने श्रीसंघने नमस्कार करुं छु. मने ज्ञाननो जीर्णोद्धार करवानी बाबतमा जे दरखास्त मूकवानी परवानगी मळी छे ते आपनी आगळ निवेदन करुं छु.
श्रुत ज्ञान छे ते भगवंते अर्थरुपे प्ररुप्यु छ अने ते गणधर महाराजे गाथारुपे गुथी द्वादशांगीनी रचना करी छे. अने अंगमांथी उपांग पयन्नादिकनी रचना साधवीजी प्रमुखने सारु मुनि महाराजाओए करी छे. ते सूत्रो तीव्र स्मरण शक्तिथी पूर्वाचार्य महाराजोए कंठे राख्या हता. बार दुकाळीयो पडवाथी ज्यारे विसर्जन थवा लाग्युं त्यारे श्रीदेवर्धि गणि क्षमा श्रमणजी महाराज विगरे ए पुस्तको लख्यां, हाले ते आधारेज धर्म चाले छे. ए पुस्तकोथीज आत्माना गुण शं छे, यथार्थ शुं छे, आत्माने शुं करवा योग्य छे, शुं नहि. करवा योग्य छ, आत्मानो स्वभाव शुं छे, आत्माने विभाग शुं छे, आ. त्माने कर्मनो संजोग हेम पाषाणनी ऐक्यतानी पेठे रह्यो छे ते केम जुदो थाय, केम आत्मानो स्वधर्म प्रगट थाय, ए सर्व बाबतो श्रुतज्ञानथी जणाय छे. अवधिज्ञान अने मनःपर्यवज्ञान ए बे आत्म प्रत्यक्ष छे पण तेथी आत्मानू अरूपी स्वरूप जाणी शकातुं नथी. तेथी क्षपक श्रेणिवंत मुनि महाराज पण शुकल ध्यान श्रुत ज्ञानथी ध्याय छे ने केवळ ज्ञान पामे छे. माटे सर्वे धर्म पामवानुं साधन श्रुत ज्ञान छे. ते श्रुत ज्ञानन जो रक्षण ना करीए तो जे जीवोने धर्म पामवो छे तेनो आधार रहेशे नहि. पूर्वेना आचार्य महाराजे पोतानो अमूल्य वखत काढीने पुस्तको. लख्य. छे अने केटलाएक राजाओए तथा भाग्यशाली धनवंत पुरुषोए धननी मूर्छा उतारी करोडो रुपीआ खर्ची-पुस्तको लखाव्यां छे. जुवो कुमारपाळ राजा, हेमचंद्र आचार्य पासे गया ने त्यां कागळो उपर पुस्तको लखातां जोयां ते वखते हेमचंद्र आचार्ये
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