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________________ ३३ स्वागतप्रमुखे पोताना भाषणमां दिलनी दाझ रजू करी. 66 छेला दश वर्षथी कॉन्फरन्सनुं नाव भरदरिये अथडाया करे छे. अमुक थोडा अपवाद बाद करतां समाजहितना प्रश्नने जाणे आखी कोम साथे कांई लागतुंवळगतुं न होय तेवी स्थिति उत्पन्न थई छे " अने तेमांथी मार्ग काढवा विज्ञप्ति करी. अमदावादना नगरशेठ श्री कस्तुरभाई मणीभाई पण आ टाणे हाजर हतां. सौए परामर्श करी नक्की कर्यु " कॉन्फरन्स जीववी ज जोईए ". शेठ कस्तुरभाईए प्रमुखस्थानेथी बोलतां भारपूर्वक कहां, के 66 " कोमना अभ्युदयना उत्तम विचार आपणी समक्ष रजू करी, तेने व्यवहारु रुपमा मूकवा कॉन्फरन्सनी खास जरुर छे. जाणे कॉन्फरन्सने आशीर्वाद आपका ज न आव्या होय तेम आ कन्वेन्शनमां राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजीनां पगलां पण थयां हां. सौमां अवर्णनीय उत्साह आव्यो. 'हिन्दनी सेवामां जैन कई रीते भाग लई शके ए. विषे तेमणे मननीय व्याख्यान आपी साची अहिंसा शुं होई शके ते समजावी ऐक्य उपर भार मूक्यो. जैन धर्ममां अस्पृश्यताने स्थान होई शके नहि एम जणावी तेना निवारण माटे तेमणे जैनोने अनुरोध कर्यो. 27 हतोत्साह थपला कार्यकर्ताओमां आ कन्वेन्शने आशानो पुनः संचार कर्यो, अने समाजना उद्धार माटे द्विगुणित उत्साहथी तेणे कमर कसी. खास अधिवेशन - - मुंबइ -- जैन कोमनो एक महत्त्वनो प्राणप्रश्न "तीर्थरक्षानो " छे. सारा भारतवर्षमां श्री जिनेश्वर भगवंतोनी कल्याणभूमिओ अने Jain Education International " For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005582
Book TitleJain Shwetambar Conferenceno Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagkumar Makatai
PublisherSohanlal Madansinh Kothari
Publication Year1960
Total Pages216
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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