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________________ हती. (१) श्री कॉन्फरन्स निभाव. खातुं, (२) श्री जीर्ण पुस्तकोध्धार खातुं, (३) श्री जीर्ण मंदिरोद्धार खातुं, (४) श्री निराश्रित खातुं, (५) श्री जीवदया खातु, अने (६) श्री केळवणी खातुं. कॉन्फरन्से हाथ धरेल तमाम खातां माटे नाणांनी जरुर छतां दर वरसे कॉन्फरन्सनी आवक ओछी थती जती होवाथी बधां खातां सारी रीते चलाववां अशक्य लाग्यु. तेथी चालु जमानामां केळवणी मुख्य साधन छे एम विचार करी आ अधिवेशनमा केळवणी अने निभाव ए बे फंड टकावी राखवाना इरादाथी “ सुकृतभंडार फंड "नी योजना घडवामां आवी अने एवो ठराव करवामां आव्यो के केळवणी खातानो खर्च तथा बीजा खर्चा चलावा दरेक स्त्रीपुरुषे दर वर्षे ओछामा ओछा चार आना कॉन्फरन्सने आपवा. पूना अधिवेशनमां एक बीजू पण महत्त्वनु पगलु लेवायुं. धार्मिक परीक्षाओ लेवा माटे जैन एज्युकेशन बोर्डनी स्थापना करवामां आवी अने व्यावहारिक केळवणीनो भार पण आ बोर्डने सोपवामां आव्यो. स्वतंत्र केळवणी खातुं बंध करवामां आव्यु. आ बोर्डनी प्रशंसनीय कामगीरी अद्यापिपर्यंत अविरतपणे चालु छे. धार्मिक परीक्षाओ बाबतमां आ बोर्ड एक धार्मिक शिक्षणनी विद्यापीठ बनी गई छे अने धार्मिक केळवणीने वेग आपवामां तेणे पायानु नक्कर काम कयु छे. आठमुं अधिवेशन--मुलतान अत्यार सुधी कॉन्फरन्सना आधिवेशनो दर वर्षे मळतां हता. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005582
Book TitleJain Shwetambar Conferenceno Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagkumar Makatai
PublisherSohanlal Madansinh Kothari
Publication Year1960
Total Pages216
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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