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________________ १७मा फालना अधिवेशनमां श्री केसरियाजी तीर्थ विषे खास ठराव करी त्यांन सामंतशाही राज्य नष्ट थई स्वतंत्र भारतमा गणराज्यना सिद्धांत उपर चालनारी राजस्थान सरकारने जैनोना अन्मसिद्ध अधिकारोने विनाविलंबे स्वीकारवा अने केसरियाजी तीर्थ जैनोनुं होई ते जैनोने सौंपी देवा जोरदार मांगणी करी हती. १९मा अधिवेशनमां केसरियाजी तीर्थ संबंधमां बोली अने श्वेतांबर समाजना हक्क वगेरे बाबतमां कॉन्फरन्स द्वारा कई कार्यवाही करवी योग्य छे तेनी तपास करी रिपोर्ट करवा श्री फुलचंद शामजी-मुंबई, श्री मोहनलाल दीपचंद चोकसी-मुंबई, श्री मनोहरलालजी चतुर-उदेपूर, श्री चतुरसिंहजी गोरवाडा-उदेपुर, श्री मगनलालजी सींगरवाडीया-उदेपूर एमनी एक समिति नीमवामां आवी हती. सने १९५४ना नवेम्बर मासमां रतलाममा केटलाक तोफानी अने बेजवाबदार तत्त्वोए सनातन धर्मना नामे जैनो विरुद्ध भय अने त्रास, वातावरण सयुं हतुं अने बहुमती कोमने जैनो विरुध्ध उस्केरी मूकी हती. लोकशाहीमां बनता आवा बनावो प्रत्ये खेद दर्शावतो अने आगेवान जैनोए जेलयात्रा तथा अनेक कष्टो सहन कर्या ते बदल सहानुभूति बतावतो अने रतलाम जैन संयुक्त संघनी लडतने टेको आपतो ठराव कॉन्फरन्सना २०मा अधिवेशनमा थयो हतो. रतलामना श्री शान्तिनाथजी मोटा देरासरनो कबजो त्यांनी सरकारे सने १९५४ना नवेम्बरथी हस्तगत कर्यो ते संघने परत सोंपी देवा जोरदार मागणी करी हती. ... रतलाम जिनालयप्रकरण अंगे नियमित पत्रव्यवहार, तार आदि, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005582
Book TitleJain Shwetambar Conferenceno Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagkumar Makatai
PublisherSohanlal Madansinh Kothari
Publication Year1960
Total Pages216
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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