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इस आगम ग्रन्थ की पूर्णता प्रतिपत्तियों की हे, अतएव बीस प्राभृतों की तथा प्रथम प्राभृत प्रामाणिकता संपादन के साथ ही सन्निहित है:- के आठ प्राभृत प्राभृतों की विषयानुक्रम सूचक ___ प्रथम दश प्राभृतों में और अन्तिम १७ गाथाओं में प्रश्नवाचक वाक्य है । किन्तु दशम से २० पर्यन्त अर्थात्-अन्तिम चार प्राभृतों प्राभृत की विषय निर्देशक गाथाओं में प्रश्नमें प्रतिपत्तियां है। शेष छ प्राभृतों में प्रति- वाचक वाक्य नहीं है। पत्तियां नहीं है । सभी प्रतिपत्तियों की संयुक्त प्रथम द्वितीय प्राभृत की प्रतिपत्ति संख्या संख्या ३४१ है।
सूचक गाथायें तो हैं, पर शेष-प्राभृतों की यहां “प्रतिपत्ति" शब्द का अभीष्ट अर्थ प्रतिपत्ति संख्या सूचक गाथाये उपलब्ध प्रतियों अन्यान्य ज्योतिष-गणितज्ञों के विभिन्न मत में नहीं। या मान्यताए है।
संभव है ये गाथायें विच्छिन्न हो गई है संकलनकर्ता श्रतधर ने प्रतिपत्तियां तो दी. या गाथाओं के रचना काल में अन्तर रहा है। किन्तु किस ज्योतिष-गणितज्ञ रचित किस।
निम्नांकित प्राभृतों की गाथाएं विछिन्न है। ग्रन्थ से उद्धृत यह प्रतिपत्ति है ? ऐसा एक
१. प्रथम प्राभत के प्रथम प्राभृत प्राभूत में भी "प्रतिपत्ति के सम्बन्ध में कहीं भी सूचित
इग्यारहवे सूत्र की गाथायें विछिन्न है। नहीं किया है।
२. प्रथम प्राभत के द्वितीय प्राभूत-प्राभूत
में सूत्र १३ की गाथाये विच्छिन्न है। ____ यदि संकलन कर्ता सभी प्रतिपत्तियों के संदर्भ-प्रन्थों में से प्रतिपत्तियों से सम्बन्धित
__३. प्रथम प्राभूत के तृतीय प्राभृत-प्राभृत में
सूत्र १४ की गाथाये विछिन्न है । सभी उद्धरण देकर स्थल-निर्देश करते तो ,
४. प्रथम प्राभृत के पंचम प्राभृत- प्राभृत में प्रस्तुत आगम ग्रन्थ गणितज्ञ-जगत में अप्रतिम
सूत्र १७ की गाथायें विछिन्न है। महत्त्व प्राप्त करता। .
५. प्रथम प्राभूत के सप्तम प्राभृत प्राभृत में ज्योतिष राज प्रज्ञप्ति के कतिपय अंश
सूत्र १९ की गाथायें विछिन्न है। विच्छिन्न है :
नवम प्राभृत के सूत्र ३१ में दो प्रतिइस आगम ग्रन्थ के संकलन कर्ता ने पत्तियों का प्रश्नसूत्र विछिन्न है। उत्थानिका में प्रश्नकर्ता गौतम गणधर को इसी सूत्र में स्वमत-प्रतिपादक सूत्रांश और उत्तर दाता भगवान् महावीर को माना विच्छिन्न है।
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