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नाम "ज्योतिप-राज-प्रज्ञप्ति” सर्वथा उचित काल कहा जा सकता है । लगता है।
___इस ग्रंथ पर पू. आ. श्री भद्रबाहुसूरि कृत संकलनकर्ता ने यदि अतीत में नाम के "सर्य प्रज्ञप्ति की नियुक्ति" वृत्तिकार आचार्य अनुसार संकलन किया होगा तो प्रथम अध्ययन मलयगिरि के पूर्व ही नष्ट हो गई थी ऐसा "चन्द्रप्रज्ञप्ति” में केवल चन्द्र सम्बन्धित गणित वे सूर्य प्रज्ञप्ति की वृत्ति में स्वयं लिखित है। और द्वितीय अध्ययन सूर्य-प्रज्ञप्ति में केवल "ज्योतिष-राज-प्रज्ञप्ति” पूर्व श्रुत का झरण सूर्य सम्बन्धित गणित ही रहा होगा,
किन्तु बर्तमान में तो कतिपय गाथाओं सकलनकर्ता चन्द्र प्रज्ञप्ति की दिवतीय के अतिरिक्त चन्द्र प्रज्ञप्ति और सूर्य प्रज्ञप्ति गाथा१ । में पांच पदों को वंदन करता है और के सभी सत्रों में अक्षरशः समानता है। तृतीय गाथा२ में वह कहते हैं किज्योतिष-राज-प्रज्ञप्ति के संकलन कर्ता:- पूर्वश्रुत का सार निष्यन्द-"झरणा” रुप
प्रश्न उठता है-"ज्योतिष-राज-प्रज्ञप्ति" स्फुट-विकट सूक्ष्म गणित को प्रगट करने के के सकलन कर्ता कौन थे ? इस प्रश्न का लिये “ज्योतिषगण-राज-प्रज्ञप्ति” को कहगा निश्चित समाधान सम्भव नहीं है, क्योंकि इससे स्पष्ट ध्वनित होता है-यह एक स्वतन्त्र संकलन कर्ता का नाम कहीं उपलब्ध नहीं कृति है। होता है।
चन्द्र प्रज्ञप्ति और सूर्य प्रज्ञप्ति के प्रत्येक __. “आगम-सुधा-सिन्धु" भाग ७ की अनु- सूत्र के प्रारम्भ में "ता" का प्रयोग है । यह क्रमणिका में "चन्द्र-प्रज्ञप्ति” और “सूर्य - "ता” का प्रयोग इसको प्राचीन कृति सिद्ध प्रज्ञप्ति” को गणधरकृत लिखा है । संभव करने के लिए अमोघ प्रमाण है। है इसका आधार चन्द्रप्रज्ञप्ति के प्रारम्भ की चन्द्र-सूर्य प्रज्ञप्ति के प्रत्येक प्रश्नसूत्र के चतुर्थ गाथा१ को मान लिया गया है । इस प्रारम्भ में "भंते” का प्रयोग और उत्तर सूत्र गाथा से यह सिद्ध होता है कि यह गौतम के प्रारम्भ में “गोयमा” का प्रयोग नहीं है। गणधर कृत ज्योतिष-राज-प्रज्ञप्ति है। जब कि अन्य अंगउपांगों के सूत्रों में "भंते" __क्योंकि गाथा में कहा है कि-
और "गोयमा” का प्रयोग प्रायः सर्वत्र है, "इन्द्रभूति' नाम के गौतम भगवान -
१. णमिउण सुर-असुर-गरुल-भुयगपरिमहावीर को तीन योग से वंदना करके
वदिए गयकिलेसे ॥ "ज्योतिष राज-प्रज्ञप्ति” के सम्बन्ध में पूछते हैं।"
अरिहे सिद्धायरिए उवज्झाय सव्वज्योतिष राज प्रज्ञप्ति का संकलन काल :
साहू य ॥२॥ भगवान महावीर और गणधर गौतम
२. फुड-वियड-पागडत्थ', बुच्छ पुव्वसुय स्वामीका समय ईस ग्रन्थराज का संकलन
सार-णिस्सद। १ नामेण इंदभूइत्ति, गोयमो वंदिउण तिविहेणं। सुहुम गणिणोवईट्ठ, जोइसगणराय पुच्छइ जिणवरवसहं, जोइसरायस्स पण्णत्ति । पण्णत्तिं ।।३॥
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