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________________ ३ चन्द्र और जल-चन्द्रमा (!) पर पानीके आजके गैज्ञानिकों को नई से नई दिशा देने अस्तित्व के विषय में वैज्ञानिकों में मत हैं। में पूर्ण सक्षम है। कुछ वैज्ञानिको का मत है कि चाहे शास्त्रीय-आधार पर हिन्दी विश्वभारती थोडी ही मात्रा में हो, के चन्द्रमा (!) पर बीकानेर के चन्द्रानुसन्धानपरिषद् ने १९६६ में पानी है। चन्द्र के सम्बन्ध में एक विज्ञप्ति प्रकाशित की ___केलिफोर्निया इन्स्टीटयूट आफ टेक्नालाजी थी। जिसमें निम्नलिखित बातों का उल्लेख के डा. सेम्युएल एसटीनने कहा-कि था____"चन्द्रमा (!) से लाये गये नमूने के विश्ले- १ भारतीयशास्त्रों के अनुसार चन्द्र का एक षण से पता चलता है कि- । भाग प्रकाशात्मक और दूसरा भाग ____ उन के प्रति दश लाख कणों में २० भाग _ अन्धकार से परिपूर्ण है। यह दर्श और हाइड्रोजन है। पौर्णमासीका प्रमुख केन्द्र है । - इसलिए ये चांद (!) पर पानी की धूमिल २ चन्द्र का जीवन आप्यु (जलीय) है और संभावना है ।" उसका जल पार्थिव-जल से सब था इस के विपरीत टो. हेरल्ड उरे का पृथक् सोमात्मक है। विचार है कि ३ चन्द्र स्वयं प्रकाशमान नहीं । उसका "चांद (1) के नमूने से पानी का अस्तित्व समस्त प्रकाश सूर्य की सुषुम्णा नामकी वहाँ कतई सिद्ध नहीं होता ।" रश्मि से जनित है। ___ यही बात जीवन के सम्बन्ध में भी है की ४ चन्द्र का वर्ण भूरा और भस्मसदृश है। कई वैज्ञानिक कहते हैं कि "चन्द्रमा (!) पर जीवन ५ चन्द्र समतल नहीं, बल्कि उबड़खबड़ है। और उस के लिए आवश्यक तत्त्व ही नही है ।” । ह । ६ उसके कुछ भाग पृथ्वी के समान है भारतीय-मनीषियों ने जिन्होंने जगत् के और कृष्ण वर्ण के है ।। स्थूलतम पदार्थों से लेकर सूक्ष्मतम पदार्थो । ७ वह रज से (धूलि) युक्त है । का गंभीर चिन्तन और निरुपण किया है, उन्होंने चन्द्र के विषय में भी पर्याप्त विचार ८ चन्द्र पर रत्नों के मिलने की पूर्ण संभाकिया है, जो आज के समय में बहुत ही वना है। महत्वपूर्ण एवं अनुसन्धेय है। * ९ चन्द्र अपने दृश्यमान दायरों में ही ___ भारतीय-ज्योतिषशास्त्रने आज से हजारों सीमित नहीं है। वर्ष पूर्व अपनी आर्षप्रतिभा के बलसे यहां इसका मण्डल परमव्यापक है । से लाखों मील दूर के ग्रहों का रूप, रंग, कुछ शास्त्रीय (भागवत) वर्णनों के आधार . कक्षा और गतिका निरुपण कर दिया है, वह पर चन्द्र सूर्य से भी उपर है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005568
Book TitleJambudwip Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages190
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size23 MB
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