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* जम्बूद्वीप
ध्रव के तारे की पश्चिम दिशा की ओर ढलता वर्तलाकार है और वे ध्रव के प्रासपास हमा दृष्टिगोचर होता है। दूसरा तारा भी ध्रुव घूमते हैं। के तारे और सप्तर्षि के प्रथम तारे की समान्तर रेखा में पश्चिम की ओर ढलता हुआ दिखाई देता सप्तर्षि के तारों की गति पृथ्वी के आसपास है जब कि शेष तारे दक्षिण दिशा की ओर ढलते नहीं, अपितु पृथ्वी के ऊपर ही ऊपर ध्रुव के तारे के हुए दिखाई देते हैं। इस प्रकार एक रात्रि के बीच आसपास है, यह भी उपर्युक्त विवेचन से निश्चित सप्तर्षि के तारे ध्र व तारे के आसपास तीन दिशा हो जाता है। में समान्तर रेखा में प्रथम दो तारों को सम्मुख रख कर कील पर बांधी गई गोल-गोल घूमती सूर्य पृथ्वी से छोटा है, बड़ा नहीं। हुई सांकल के समान घूमते हैं ।
कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि-पृथ्वी पर __'रात्रि के प्रारम्भकाल में पूर्वाकाश में दिखाई रात और दिन होते हैं इससे ज्ञात होता है कि देने वाले तारे पृथ्वी के घूमने के कारण प्रातः 'पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है ।' .. पश्चिमाकाश में दिखाई देते हैं'-ऐसा जो 'पृथ्वी के घूमने' का कारण बताया जाता है वह कारण
किन्तु यह कहना उचित नहीं है । क्योंकि यदि सप्तर्षि के तारों की भ्रमणगति की परिस्थिति में पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती हो तब रात और टिक नहीं सकता। सप्तर्षि के तारों के भ्रमण दिन होते हैं उसी प्रकार सूर्य भी घूमता हो और काल के मध्य दिशा परिवर्तन और भ्रमणक्षेत्र की पृथ्वी स्थिर हो, तब भी रात और दिन हो असमानता पृथ्वी के घूमने के कारण नहीं हो सकते हैं । सकती। परन्तु सप्तर्षि के तारों की गति स्वयं दैनिक
साथ ही 'सूर्य पृथ्वी की अपेक्षा १३ लाख वर्तुलाकार हो तभी इस प्रकार दिशा परिवर्तन
गुना बड़ा होने से घूम सके ऐसी सम्भावना कम तथा भ्रमणक्षेत्र की असमानता बन सकती है।
है' ऐसी कल्पना करना भी अनुचित है । क्योंकि यह प्रत्यक्ष प्रमाण से समझा जा सकता है सूर्य पृथ्वी की अपेक्षा १३ लाख गुना बड़ा नहीं है, कि-सप्तर्षि के तारों की गति स्वयं दैनिक तथा अपितु सूर्य पृथ्वी से भी छोटा है।
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