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________________ सूर्य तथा पृथ्वी सम्बन्धी कुछ प्राचीन तथ्य बहुधा प्राचीन वाङ्मय में पृथ्वी को स्थिर, चपटी तथा चक्रवत् गोल बताया गया है । तथा अन्य ग्रहों के समान सूर्य को भी पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए बताया गया है। इसीलिए कहा जाता है - उदितः सूर्यः । श्रस्तंगतः धर्कः । इन या ऐसे वाक्यों से ही स्पष्ट है कि चलता सूर्य ही है । और हमें दीखता भी वैसा ही है कि सूर्य आकाशयात्रा कर अन्ततः क्षितिज में लुप्त हो जाता है । हमें सूर्य भी भौतिक रूप से वैसे ही उदित होते, आकाशयात्रा करते तथा ग्रस्त होते दिखाई देता है जिस प्रकार चन्द्र । अतः अन्य ग्रहों के समान चन्द्र गतिशील है । और चन्द्र के समान सूर्य भी गतिशील प्रतीत होता है । समूचा भारतीय ज्योतिष् इसी मूल आधार पर पल्लवित हुआ है कि सूर्यसहित सभी ग्रह-नक्षत्र और पूरा भूगोल अथवा सौरमंडल गतिशील है तथा पृथ्वी स्थिर है । ये सभी इस स्थिर पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं । परन्तु आज विज्ञान समूचे अन्तरिक्ष का हस्तामलकवत् परीक्षण करता जा रहा है । आज तीव्रगामी यान चन्द्र तथा अन्य ग्रहों की यात्रा पर जाते हैं । वे पृथ्वी की लगभग डेढ़ घंटे में परिक्रमा कर लेते हैं । श्रतः श्रब वैज्ञानिकों के सामने पृथ्वी का आकार, उसकी गति, सूर्य की स्थिरता इत्यादि स्पष्ट और सर्वज्ञात हैं। तदनुसार पृथ्वी नारंगी सी गोल है और उसकी दोहरी गति है । वह अपनी धुरी पर भी घूमती है और निश्चित क्रम में स्थिर सूर्य की प्रदक्षिणा भी करती है । अपनी धुरी पर घूमने से Jain Education International [D] डा० भगवतीलाल राजपुरोहित १२- वीर दुर्गादास मार्ग, उज्जैन दिनरात का क्रम चलता है तथा सूर्य की प्रदक्षिणा करने से ऋतु परिवर्तन होता है। सूर्य के उत्तरायण होने पर उत्तरी ध्रुव पर प्रकाश रहता है तथा दक्षिणी ध्रुव पर अन्धकार एवं सूर्य के दक्षिणायन होने पर दक्षिण ध्रुव पर प्रकाश रहता है तथा उत्तरी ध्रुव पर अन्धकार । ये सभ वैज्ञानिक तथ्य हैं । और इसीलिए सूर्य के दक्षिरणायन होने पर ही नवम्बर से जनवरी तक हमारे वैज्ञानिक दक्षिणी ध्रुव की यात्रा करते हैं जबकि वहां दिन और गर्मी रहती है। एक ध्रुव पर सतत् छः माह तक दिन रहता है तब दूसरे ध्रुव पर सतत् छः माह तक रात रहती है । ये तथ्य भी सिद्ध हैं । इनमें से बहुधा तथ्यों को हमारे प्राचीन ऋषियों और विद्वानों ने भी जान लिया था । इस सम्बन्ध में उन्होंने अपने ग्रन्थों में संकेत भी किया है । विष्णु, वायु तथा कूर्म पुराण में भौगोलिक चर्चा की गयी है । सर्वत्र सूर्य को गतिशील बताया गया है । विष्णु पुराण में भी उसे गतिशील बताया गया है । परन्तु वहां के भौगोलिक सन्दर्भों में कुछ ऐसे भी सन्दर्भ प्राप्त होते हैं जो सूर्य को गतिशील नहीं बताते हुए उसे स्थिर ही व्यक्त करते हैं । तथा यह भी स्पष्ट किया गया है कि चन्द्रमा सूर्य के प्रकाश से ही प्रकाशित होता है । वहां कहा गया है- समस्त दिशाओं में जहां के लोग रात्रि के अन्त होने पर सूर्य को जहाँ देखते हैं, उनके लिये वहां उसका उदय होता है और For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005567
Book TitleJambudwip Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages102
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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