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अथ चतुर्विंश श्री महावीरजिन स्तवनम्
॥ ढाल कडखानी देशीएं चाले छे ||
तार होतारग्रभु मुझ सेवक भणी, जगतमा एटहुँ सुजश लीजें। दास अवगुण भोजाणी पोता तणो, दयानिधि दीन पर दयाकीजें॥
॥१॥
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