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अथ प्रथम श्री ऋषभजिन स्तवनम्
|| नींदरडी वेरण हुई रही - ए देशी ||
ऋषभ जिणंदशुं प्रीतडी, किम कीजें हो कहो चतुर विचार | प्रभुजी जइ अलगा वस्या, तिहां किणे नवि हो कोई वचन उच्चार ॥ ऋषभ ॥१॥
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