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मयण-धणदेव कहा
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अह अच्चब्भुय-चरियं दोण्ह वि दठूण विम्हिओ मयणो। सप्प-भय-चत्त-चित्तो चिंतिउमेवं समाढत्तो चंडाए सकोवाए सरणं जाया इमा पयंडा मे। जइ पुण करेन कोवं इमा वि ता होज्न को सरणं ? पियकारिणो वि मह विप्पिएण केण वि इमा वि कुप्पेज। पियमप्पणो वि तीरइ पए पए केत्तियं काउं?
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सो नत्थि विप्पियाई अवगणिउं गणइ जो सुकयमेव । एक्केण दुक्कएणं सुकय-सहस्सं फुसइ लोओ ता भुयगीहिं व भयंकराहिं एयाहिं दोहिं वि अलं मे। इय चिंतिऊण चित्ते गेहाओ विणिग्गओ मयणो पत्तो परिब्भमंतो कमेण मणि-निम्मियामर-निवासे। वासवपुर-संकासे संकासे पवर-नयरम्मि तो कुसुम-गंध-लुद्धालि-जाल-मुहलम्मि परिसरुजाणे। कंकेल्लितरुस्स तले विस्साम-निमित्तमुवविट्ठो तावाऽऽगंतूण इमं भणिओ सो माणुदत्त-गिहवइणा। भो मयण ! सागय! भइ ! एहि नयरम्मि पविसामो कह मुणइ मज्झ नाम इमो? त्ति अह विम्हयं परिवहतो। संचलिओ सो तेणं नीओ निय-मंदिरमुदारं महया संरंभेणं कारविओ ण्हाण-भोयणाईयं । भणिओ य तदवसाणे सप्पणयं भाणुदत्तेणं
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