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________________ Jain Education International |१८ पूर्वाफाल्गुनी मो टा टी टू २ शय्याकारवत् पल्यंकार्द्ध १६८ १६ उत्तराफाल्गुनी टे टो पा पी २ पल्यंकाकारवत् अर्द्धपल्यंक पू षा णा ठा ४-गोसीसावलीकाहार सउणि पुष्फोवयार वावी य । नावा आसकखंधे भग छुरधारा य सगडुद्धी ॥१॥ मिगसीसावलि रुहिरबिंदु तुल वद्धमाणग पडागा पागारे पलियंके हत्थे मुहपुप्फए चेव ॥२॥ कीलग दामणि एगावली य गयदंत विच्छुअअले य । गयविक्कमे य तत्तो सीहनिसाई य संठाणा ॥३॥ [ज्यो. क. पृ. ७३] हस्ताकारवत् पे पो रा १ मौक्तिकाकारवत् मुखमंडन १ प्रवालाकारवत् कीलक -07 For Personal & Private Use Only २३ विशाखा तोरणाकारवत् संग्रहणीरल (बृहत्संग्रहणी) गुजराती अनुवादसह 0000 ना अनुराधा २५ ज्येष्ठा ना नी नो या यी यु ३ पशुदमनाकार एकावली गजदंताकार मण्याकारवत् कुंडलाकारवत् ये यो भा भी ११ सिंहपंजाकारवत् पुच्छाकार २७ पूर्वाषाढा भू धा फ ढा ४ शय्याकारवत् गजविक्रमाकार 10-0.. ॥ इति चतुर्थं नक्षत्रविचारे लघुपरिशिष्टम् ॥ -0-6 २८ उत्तराषाढा भे भो जा जी ४ सिंहनिषदनाकार झुलता गजाकारवत् -० www.jainelibrary.org
SR No.005475
Book TitleSangrahaniratnam Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year2003
Total Pages1042
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size34 MB
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