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तत्त्वरमण जसु मूलो जी ॥ पररमणीयपणुं टले, सकल सिक अनुकूलो जी ॥१॥ उलालो ॥ प्रतिकूल श्राश्रवत्याग संयम, तत्वथिरता दममयी ॥ शुचि परम खंति मुत्ति दश पद, पंच संवर उपचई ॥ सामायिकादिक नेद धर्मे, यथाख्याते पूर्णता ॥ अकषाय अकलुष श्रमल उज्ज्वल, कामकश्मलचूर्णता॥२॥ ॥पूजा॥ ढाल श्रीपालना रासनी॥
॥ देशविरति ने सरव विरति
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