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पाम्या, जराजन्ममरणादि जय जेणे वाम्या ॥ निरावरण जे यात्मरूपे प्रसिद्धा, थया पार पामी सदा सिद्धबुद्धा ॥ १ ॥ त्रिजागोन देहावगाहात्मदेशा, रह्या ज्ञानमय जात वर्णादि लेषा ॥ सदानंद सौख्याश्रिता ज्योतिरूपा, अनाबाध अपुनर्नवा - दि स्वरूपा ॥ २ ॥
॥ ढाल ॥ उलालानी देशी ॥ सकल करममल क्षय करी, पूरण शुद्ध स्वरूपो जी ॥ श्रव्याबाध प्रभुतामयी, आतम संपत्ति
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