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४६ पासह ॥२॥ जल निम्मल करे कमलहि लेविणु, सुरवर नाव हि मुणिव से विणु ॥ पत्नण जिणवर तुह पश्सरणं, नय तुटर लन सिकि गमणं ॥३॥ ए गाथा कही खूण पाणी उतारीने जलशरण करवं, त्यार पड़ी माला लश् उन्ना रहीने या प्रमाणे गाथा कहेवी:॥ अथ पुष्पमालपूजा गाथा ॥
उन्नय पुऊय नत्तस्स, निय गणे संठियं कुणं तस्स ॥ जिण
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