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१२५ ॥ ढाल बही ॥ धर्मजिणंद दयालजी, धर्म तो
दाता ॥ए देशी॥ . ॥ अक्षतपूजा जवि कीजे जी, श्रदत फल दाता ॥ शालि गोधूम पण लीजे जी ॥ १० ॥ प्रजु सन्मुख स्वस्तिक कीजे जी ॥१०॥ मुक्ताफल वीचमे दीजे जी ॥ ॥ ॥१॥ एदवा उज्ज्वल अक्षत वासी जी ॥ १०॥ शुन तंडुल वासे उबासी जी ॥ अ० ॥ चूरक चउगति चित्त चोखे जी॥१०॥
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