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विजये वर प्रधान, मध्य खंडे श्र. वतरे जिन निधान ॥४॥ ॥अथ सुपनानी ढाल त्रीजी॥
॥ पुएये सुपनद देखे, मनमाहे हर्ष विशेषे ॥ गजवर उज्ज्वल सुंदर, निर्मल वृषन मनोहर ॥१॥ निर्जय केशरी सिंह, लक्ष्मी श्रतिही अबीद ॥ अनुपम फूलनी माल, निर्मल शशी सुकुमाल ॥२॥ तेजे तरणी अति दीपे, इंउध्वजा जग पूरण जीपे ॥ पूरण कलश पंडूर, पद्म सरोवर पूर ॥३॥
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