________________
हय गय रथ पायक नंडार, विन्नव तगो लाग्ने नही पारं ॥ ७॥राणी जेहने लक्ष्मीवती, बुद्धिमंत जा ये सरस्वती॥ रूपें जीती जेणें अपरा, नमणी ख मणी जाणे धरा ॥७॥ चनस: नारी कलानिधि जाण, हंस हराव्यो गति पिक वाण । जेहन वपु दे खी नवस्या, नत्तम गुण पावीमने वस्या ॥णानो गवतां सुख लीलविलास, गुन्न मुदूरत सुत आयो ता स ॥ उत्तम गुण देखी अनिराम, नत्तमचरित्र दियु तस नाम ॥१०॥ बीज चंनी परें कुमार, दिन दि न वाधे कलाविस्तार ॥ दीठो सहुनें आवे दाय, पूरव पुण्य तणे सूपसाय ॥११॥ बालपणे पण दया वि. शाल, न करे केहने हरउर मार ॥ सत्यवादी मुख मूतवाण, न्यायवंत बहु गुगनी खाण ॥१२॥ श स्त्र शास्त्रनी शीखी कला, धर्मशास्त्र शीख्यां निर्मला। न.लीये जेह अदत्तादान, परस्त्री जाणे बेहेन समान ॥ १३ ॥ जगति करे जिनवरनी घणी, गुरुनी नगति करे सुख नणी ॥ एहवो कुमर गुणे सुकमाल, कहे जिनहर्ष प्रथम श्र ढाल ॥ १४ ॥ सर्वगाथा ॥१३॥
॥दोहा॥ ॥ कला वहोंतर जे लण्या, पंडितनाम धराय ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org