SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 273
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावत, तीर्थंकर, गणधर, आगम, विहरमान, आदि तात्त्विक बातोंके नाम, चोदह रत्नोके नाम और उनका प्रभाव, अभक्ष्य तथा अनंतकाय वस्तुके नाम विगेरे बडे बडे विषय डाल पुस्तकको पूरी तौरसे उपयोगी बनाइ गइ है. सूत्रका अर्थ वांच कर बराबर ध्यानमें रखा जायगा तो सूत्रोचारण करती वक्त अत्यंत आनंद होगा. जब तक मतलब समझमें नहिं आता है तब तक कुछ भी आत्मोल्लास नहीं हो सकता. इस लिये हर एक शक्सने चाहे उसे प्रतिक्रमण सूत्र आता हो या, नहीं आता हो तो भी अवश्य सूत्रार्थका पठन पाठन कर शके इस वास्ते इस पुस्तकका प्रकाशन किया जाता है. पुस्तक अध्ययन करने योग्य है. पुस्तकके ग्राहक संख्या के अनुसार ही छपेगी. अत एव पहिलेसे ग्राहक बन जावे ताकि बाद में पुस्तक बिना न रहे जाय. पाठशालाके कार्यकर्ताओको चाहीये कि यह पुस्तक विशेष प्रमाणमें खरीद करें. क्योकि यह पुस्तक हिन्दी भाषामें मिलना बहोत मुश्केल है. इस लीये पाठशालाओ में इस किताब ना रखना बोत जरुरी है. ग्राहक बनने वालाको चाहीये कि इस की किंमत पहेले भरकर रसीद ले लेवे. ओर पुस्तक छपने पर ग्राहको को भेज दी जायगी. पत्र व्यवहार निचे के पत्तेसे करे: मास्तर खूबचंद केशवलाल ठेः श्री पार्श्व जैन पाठशाला सिरोही ( राजस्थान) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005282
Book TitleMurtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Keshavlal Master
PublisherGyan Pracharak Mandal Sirohi
Publication Year1955
Total Pages274
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy