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________________ ( राग वरवा ) अरचन सुंदर बना-ए चाल श्री अंतरिक्ष महाराज दर्शन सुखकारी । ए आंकणी० तुज मूर्ति मोहनगारी, कर्म कठोर कंद चूरनारी । प्रमोद तनमनमां देनारी, जेम मोरने मेघ गाज । दर्शन० १ ॥ हूं प्रभु कर्मरोगथी पुरो तुं धनवंतरी नही अधुरो।। कोजे रोग तणो चकचूरो, ढील शेनी छे महाराज । द० २ ॥ जग उद्धारक अंतरजामी, सुणो अर्ज करुं छु शिरनामी। मुज पुंठे पडयो मोह हरामी, जेम तीतर पर बाज । द० ३ ॥ अंतरिक्ष अंतर नवि कीजे, मुखथी निज सेवक कहीजे । नेहनजर मुज सन्मुख दिजे, राखी प्रभु मुज लाज । द० ४ ॥ बेठा अर्ध पद्मासने आप, धर्म दोलत दायक माबाप हंस सम करो टाली पाप, कर्पूरना शिरताज । द० ५ ॥ ( नाम वीर प्रभु लिजे भवियां लिजे रे लिजे रे लिजे अध छीजे-ए चाल ) पास अंतरिक्ष स्वामी, प्रभुजी स्वामी रे स्वामी रे स्वामी सुखधामी ॥ ए आंकणी ॥ अंतरिक्ष प्रभु अंतरजामी त्रण जगतमां नामी रे नामी रे नामी सुखधामी । पास० १॥ दोष अढार रहित निरंजन, थया शिवगति गामी रे गामी रे __गामी सुखधामी । पास० २ ॥ अचिंत्य चिंतामणि सम दर्शन, करी में दुःख दियां वामी रे वामी रे । वामी सुखधामी । पास० ३ ॥ सचित्त आनंदरुप अनुपम, जय प्रभु निष्कामी रे कामी रे। कामी सुखधामी । पास० ४ ॥ अर्ध पद्मासन मूर्ति मनोहर, पूजीए आनंद पामी रे पामी रे पामी सुखधामी । पास० ५ ॥ (६२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005202
Book TitleJain Shwetambar Tirth Antriksha Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAntriksha Parshwanath Sansthan Shirpur
PublisherAntriksha Parshwanath Sansthan
Publication Year1972
Total Pages154
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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