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________________ જૈન શ્રમણ ૬૫૯ मांगलिक सुनाने होस्पिटल लेकर गये। आचार्य भगवंत ने पूज्यश्री के परिवार में से कुल 11 व्यक्तियों की दीक्षा उनकी माताजी को मांगलिक सुनाकर अशोककुमार (आपसे) हुई है । आपके तीन संसारी काकाजी, एक काकीजी व एक को कहा-अगर तेरी माताजी की तबियत ठीक हो जाएगी काकीजी की लड़की कुल 5 दीक्षा पहले हो चुकी थी। तो तुझे कुछ करना होगा। इस पर आपने कहा कि यदि पूज्यश्रीने अपनी दीक्षा के बाद अपने संसारी बहन के पूरे मेरी माताजी की तबियत ठीक हो गई तो में इसी साल परिवार को प्रतिबोध करके-संसारी भाणेज, तीन भाणजी दीक्षा लूंगा, अगर दीक्षा न ले सका तो भी संसार में रहकर और एक बहन को क्रमसर दीक्षित बनाया गया। "दीप से "छः" विगई का त्याग रखूगा। इस प्रकार की प्रतिज्ञा दीप जले" की तरह परिवारमें एक व्यक्त दीक्षित बनने के गुरुदेवके समक्ष ली। उस प्रतिज्ञा व शुभ संकल्प के पुण्य बाद उनके परिवार में अनेकों के लिए दीक्षा मार्ग सुलभ ब प्रभावसे उनकी मातृश्री की तबियत अच्छी हो गई व उन्हें गया। घर पर लेकर आए । __पंन्यास प्रवर अपराजित विजयजी म.सा. दीक्षा दीवस इस घटना प्रसंगसे अशोककुमार की दीक्षा-भावना से ही अपने गुरुदेव की अपूर्व सेवा-वैय्यावच्च के साथ बलवती हुई और किसी भी प्रकार से उसी साल दीक्षा ज्ञानाभ्यास करते हुए संस्कृत, प्राकृत, न्याय का अभ्यास अंगीकार करनेका दृढ़ निश्चय किया । घर में दीक्षा दिलाने करके विविध प्रकरण, कर्मग्रंथ, कम्मपयडी और आगम का के अनुकूल संयोग वातावरण न होनेसे अशोककुमार शिवगंज तलस्पर्शी अभ्यास परीशीलन किया। अट्ठारह वर्ष तक (राजस्थान) से अपने माता-पिता के अन्तःकर्ण से आशीर्वाद गुरुदेवकी निश्रा में उनेक साथ रहकर आत्म को भावित लेकर आबू-देलवाडा पालीताणा तीर्थ की यात्री करके मुंबई- बनाया। अभी के दस वर्षों से गुरुदेव की आज्ञा से विविध माटुंगा स्थित गुरुदेव श्री आ. हेमचंद्रसूरीश्वरजी म.सा. के क्षेत्रों में स्वतंत्र (विगत) चातुर्मास करते हैं। अपनी लाक्षणिक पास पहुँचे । प्रवचन शैली से अद्भुत शासन प्रभावक कार्य कर रहे है। उनकी भावना यह थी कि उनकी मातश्री उन्हें पूज्य गुरुदेव ने योग्यता देखकर उन्हें गणिवर्य व पंन्यास पद साधुवेशमें देखकर दीक्षा की अनुमोदना करते हुए संसार से से विभूषित किया। पंन्यास प्रवर अपराजित विजय जी म.सा. विदा हो जिससे भवांतर में उनके लिए संयम का मार्ग सुलभ अपने सौम्य स्वभाव, मधुरवामी व सहृदयतापूर्ण प्रवचनसे हो जाय। लोगों के दिल जीतकर उनसे विविध शासन प्रभावक कार्य करवा रहे हैं। अपनी भावना गुरुदेव के समक्ष व्यक्त की लेकिन मुंबई में उन्हें दीक्षा देने से दीक्षा की चालू विधि में विघ्न સૌજન્ય : સ્વ. મૃગાવતીબેન ભીમરાજજી ભગવાનજી શિવગંજવાળા की संभावना होने से उन्हें (अशोककुमार) अमलनेर (जि. नरेन्द्र कुमार, निमार, ससान, 6पान, स्व. विमार, जलगांव) महाराष्ट्र भेज दिया। आचार्य श्री भुवनभानुसूरीश्वरजी જિમીકુમાર, મોનિકાકુમારી હાલ : ભાયખલા-મુંબઈ-૨૭, म.सा. का आशीर्वाद पत्र लेकर अमलनेर गये वहाँ पर परम પૂ. પં.શ્રી હર્ષશીલ વિજયજી મહારાજ पूज्य मुनिराज श्री जयतिलक विजयजी म.सा. ने अषाढ सुद-10 संवत 2035 को चातुमास प्रवेश के साथ ही સૌરાષ્ટ્રના કાશી તરીકે સુવિખ્યાત જામનગર શહેરનાં વતની अशोककुमार को दीक्षा दी गई व उनका दीक्षित नाम मुनि ઝવેરી વ્રજલાલ ઘેલાભાઈના श्री अपराजित विजयजी म.सा. रखा गया। . ધર્મપત્ની ધર્મશીલા મંજુલાબેનની ___ स्वजन-संबंधी व परिवारजन दीक्षा के समाचार मिलते કુક્ષિએ વિ. સં. ૨૦૨૩ના ફાગણ ही मिलने के लिए आये। मातुश्री मृगावतीबेन को अपने पुत्र को । સુદ ૧૦ના દિવસે મોહમયી મુંબઈ साधु वेश में देखकर अत्यंत आनंद हुआ व आखों से हर्ष के નગરીમાં પુત્રનો જન્મ થયો. હિતેષ आंसू बह निकले। ठीक उसके 10 महिने पश्चात् मातृश्री अपने નામ પાડવામાં आव्यु. पुत्र की अनुमोदना करते करते समाधि से संसार से विदाई ली બાલ્યાવસ્થાની સાથે જ और अशोक कुमार की भावना साकार बनी। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005142
Book TitleVishwa Ajayabi Jain Shraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal B Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year2010
Total Pages720
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size35 MB
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