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જૈન શ્રમણ
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ज्योतिर्विद आचार्यश्री
चतुर्दशी तप आदि अनेक तप किन्तु बादमें वर्षीतप से नाता जिनरत्नसागरसूरीश्वरजी म.सा. जोड़ लिया एवं अखण्ड वर्षी तप करने लगे। वर्षीतप भी आचार्य श्री जिनरत्नसागरसूरीश्वरजी म.सा. का जन्म
. आपने चोथभक्तसे ही किये। आपके 21 वर्षीतप हो चुके है।
आ ओशवालवंशी मंडोवरा गौत्रीय श्रेष्ठीवर्य श्री मनसुखलालजी के आप ज्योतिष शास्त्र के परम ज्ञाता है। आपने 38 वर्ष यहाँ मातुश्री मानकुंवरबहन की कोख से हुआ है। आपका की भर युवा वय में संयम अंगीकार कर संस्कृत-प्राकृत का संसारी नाम पंचमलाल रखा गया।
ज्ञान प्राप्त किया। कर्मग्रंथ, तत्त्वार्थ पंचसंग्रह, कम्मपयडी तक धनवान परिवार में जन्मे पंचमलाल ने इन्दौर के अभ्यास कर आपने अच्छी विद्वत्ता हासिल की। ज्योतिष दोलकर कॉलेज में व्यावहारिक पढाई कर गौतमपरा गाँव में शास्त्र आपका प्रिय विषय रहा हैं। आठ-आठ घण्टे आप अपने कपड़े के व्यवसायमें भाग्य आजमाया। आपकी शादी
ज्योतिष का अभ्यास करते रहे है। ज्योतिष के गिने चुने खाचरौद के श्रेष्ठीवर्य श्री कालरामजी छाजेड की सपत्री विद्वानों में आपका नाम लिया जाता है। आप सागर समुदाय ताराबाई के साथ हुई।
के मुर्हत निकालने के लिए गच्छाधिपतिश्री द्वारा नियुक्त थे। आपका सांसारिक जीवन सभी रूप से सुखमय था। आप शासनप्रभावक, तपस्वी एवं ज्योतिर्विद हैं। आपने आपके एक लड़की गुणबाला एवं दो पुत्र जितेन्द्र तथा हमेशा पैदल विहार करके संपूर्ण भारत की यात्रा की है। चंद्रप्रकाश थे। आप संपर्ण धार्मिक परिवार के होने के नाते दक्षिण भारत भी आप विचरण कर आए। आपने दक्षिण में आपके जीवन में धर्म के संस्कार प्रारंभ से ही थे। आपके भी खूब शासनप्रभावना की। परिवार से आपकी दादी तथा बुआ ने संयम अंगीकार कर
आपको निमच छावनी में गणि पदवी, श्री भक्तामर रखा था। आपकी छः बहने भी तथा एक भाई भी संयम की महातीर्थ अभ्युदयधाम धार में पंन्यास पदवी तथा सन 28आराधना कर रहे थे। अतः आपके भी मन में संयम का भाव
1-2000 में आचार्य पदवी से अलंकृत किया गया। आपको जागृत हो उठा।
सभी पदवीयां मालवभूषण नवरत्नसागरसूरीश्वरजी म.सा. के आपने सन् 1977 में शंखेश्वर आगममंदिर संस्थापक शुभ कर कमलों से प्राप्त हुई। श्री अभ्युदय सागरजी म.सा. के पास अपने संपूर्ण परिवार
आपके सुपुत्र मुनि हाल आचार्य हैं। आप भी बंधु के साथ गौतमपुरा में कार्तिक वदि नौवीं को संयम अंगीकार
युगल के नाम से पहचाने जाते हैं। आपकी पुत्री श्री किया एवं मुनि जिनरत्नसागरजी नाम धारण कर संयम की
गुणरत्नाश्रीजी म. तथा छोटे पुत्र चंद्रसागरजी म.ने वर्धमान आराधना करने लगे। आपके साथ आपके भाई यशवंत ने
तप की ओली पूर्ण की है एवं दूसरी बार 77 वीं ओली चल पत्नी ताराबाई तथा पुत्र-पुत्री गुणबाला, जितेन्द्र, चंद्रप्रकाश
रही है। आपके ज्येष्ठ पुत्र आचार्य श्री जितरत्नसागरसूरिजी एवं भाई की पत्नी चंदाबाई ने मिलकर एक साथ दीक्षाएँ
म.सा. भी मालवमणि, व्याख्यान वाचस्पति की उपाधि से ग्रहण की।
अलंकृत हैं एवं शासनप्रभावना कर रहे हैं। आपकी पत्नी ताराबाई का नाम तीर्थरत्नाश्रीजी म.,
आपके शुभाशीर्वादसे मेवाड़ के प्रतापगढ़ में श्री बेटी का नाम गुणरत्नाश्रीजी म., बेटे के नाम मुनि श्री
शंखेश्वर पार्श्वनाथ महातीर्थ तालाब का एवं मध्यप्रदेश के धार जितरत्नसागर, चंद्ररत्नसागरजी म.सा. तथा भाई यशवंत
में भक्तामर महातीर्थ अभ्युदयधाम का निर्माण हो रहा है। का नाम मुनि जयरत्नसागरजी म.सा. एवं चंद्राबाई का नाम
सात जगहों पर गौशालाएं संचालित की जा रही हैं। आपके चारित्ररत्नाश्रीजी म.सा. रखा गया। मालवदेश का यह प्रथम
कर-कमलों से आजतक कई दीक्षाएँ-प्रतिष्ठाएँ संपन्न हो चूकी परिवार था कि जिसने सर्वप्रथम संपूर्ण परिवारने संयम ग्रहण
हैं। आपके तन में रोग है किन्तु मन में समाधि है यही आपके कर इतिहास बनाया।
जीवन की विशेषता है। संयमी बनकर आप हमेशा एकासने से कम तप नहीं
सौजन्य : भक्तामर महातीर्थ अभ्युदयधाम पो. धार (म.प्र.) करते थे। आपने वीसस्थानक, नवपद ओली, अष्टमी,
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