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________________ જૈન શ્રમણ ૪૭. तेवी ४ शत तमो ४ सय हाथे त महेनत शन तैयार व माता पिता धन्यवाद के पात्र है। सं. 2014 को मगसर सुदी ७२ सावितत्युत्तरथ५यडिसन्ना' वगैरे पुस्ता अने १ पूर्णिमा के दिन प.पू. आ. श्री लब्धि सूरीश्वरजी म.सा. के हस्ते थी ६ उभग्रंथन। १० प्रा२ना पुस्तान वि.सं. २०५उमां दीक्षा महोत्सव सम्पन्न हुआ जिसमें आप पू.आ. पूण्यानंद श्रीपालनगरमा तमोश्रीनी निश्रामा साथे 65घाटन सूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य रत्न बने। बाद में अन्य 4 भाई भी थयेस. तेम ४ भए ५ वि.सं. २०६४मा पुनर्मुद्र। १७ पू. आ. पूण्यानंद सूरीश्वर जी म. सा. के शिष्य बनें। ग्रंथरत्नो पौष महिनामा प्रोशित या अने पाहीना ५ गुरुदेव की निश्रा में वारिषेण सूरीश्वर जी म. सा. शास्त्र अंथरत्नोन ५५ हूंसमयमा आ४ सालमा प्रशन थवानी अध्ययन और तप आराधना में आगे बढे। सं. 2037 में माह संभावना छे. पूश्य आयार्यश्री विश्यवीरशेपरसूरीश्व२७ सुदी 14 को मद्रास में पू.आ. श्री विक्रम सूरि जी म.सा. के महा२।४ निरामय हायुष्य पाभीने अने:विध शासनप्रभाव कर कमलों से आप पन्यास पद पर विभूषित हुए। सं. 2043 हार्यो ४२ता २४ो मे ४ अभ्यर्थना! मने पूज्यश्रीन वैशाख सुदी 6 के दिन श्रावस्ति नगरी में संभवनाथ जिनालय ચરણારવિંદમાં કોટિ કોટિ વંદના! की अंजन शलाका प्रतिष्ठा महोत्सव के अवसर पर कर्नाटक केसरी पू.आ. श्री भद्रंकर सूरी जी म. सा. के कर कमलों से સૌજન્ય : એક સદગૃહસ્થ તરફથી आप सूरी पदवी से विभूषित हुए। एक ही वर्ष में पंच प्रस्थान मराठवाड़ा देशोद्धारक की आराधना उवसग्गहरं तीर्थ में कर दिव्य प्रभावक बने । पू. आचार्य श्री विजय वारिषेण मराठवाड़ा में अनैक नगरों व गांवों में पांच वर्ष तक विचरण करके धर्म विमुख प्रजा को धर्मावलम्बित बनाया। औरंगाबाद सूरीश्वरजी म.सा. शहर में उद्यापन उपधान तप, प्रतिष्ठा, अंजन शलाका महोत्सव गुजरात प्रदेश में स्व निश्रा में आयोजित कराने का यश प्रापूक किया। दक्षिण बडोदरा के समीप छानी नगर भारत के प्रान्तों में पू. श्री ने शासन प्रभावना के द्वारा जैनं स्थित है। वहाँ पर 80 घरों में जयति शासनं का जयघोष बजाया तथा भारत के उत्तरी छोर से 150 दीक्षायें हुई है। नेपाल में श्री वीरप्रभु के शासन का धब्ज लहराया। नेपाल में अतिश्योक्ति नहीं होगी अगर मूर्तिपूजक श्रमण का प्रथम प्रवेश करने वाले पूज्य श्री बने। छानी नगर को संयम नगरी के नेपाल की सरहद पर फाटबिसगंज, फुलका आदि नगरों में नामसे पुकारा जाने लगे । उसी जिन मंदिरों की अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव के दौरान पूर्ण नगर में श्री शांतिनाथ प्रभु की की। ठाम चौविहार एक दत्ती करनेवाले भारत में प्रथम आचार्य शीतल छाया में धर्मप्रिय श्री श्री की प्रेरणा से अनैक नगरों में आयम्बिल खाता की स्थापना सोमचंद भाई गिरधर भाई के घर माता कमला बहिन की कुक्षी हुई। से छ: पुत्र रत्नों में से 5 पुत्रों ने दीक्षा ग्रहण की उनमें से पूज्य श्री ने अभी तक 11000 आयम्बिल, 1500 तीसरे पुत्र महेश भाई आज हमारे बीच आचार्य श्री विजय वारिषेण सूरीश्वरजी म.सा. महान तपस्वी मराठवाड़ा देशोद्धारक एकासना व 1500 बियासना किए है। आप की निश्रा में 17 उपधान तप, 45 शिखरबंद मन्दिरों की प्रतिष्ठा, 25 गृहमन्दिर के रूपमें जाने जाते है। आपके अन्य सांसारिक भ्राता (किरीट पूर्ण हुई है। अनगिनत तीर्थदर्शन तथा हिंगोली (महाराष्ट्र) से भाई) आ. श्री विनयसेन विजयजी म.सा., (मुकुन्द भाई) शत्रुजय तीर्थ का 100 यात्रियों का संघ निकाल कर उग्रविहार प्रवर्तक श्री वज्रसेन विजयजी म.सा. (तेजपाल भाई) श्री वल्लभसेन विजयजी म.सा. के रूप में जिन शाशन की प्रभावना करके 18 अभिषेक पालीताणा में करायें । ऐसी 10 यात्रा संघ, कर रहे है। आपके सबसे बड़े भाता स्व. (चन्दूभाई) श्री मासक्षमण की 40 तपस्याएं, 10 दीक्षाएं, 300 छोड़ का विरागसेन विजयजी म.सा. जो अब देवलोक हो गये है। प.पू. उद्यापन व अवधान आदि अनेक शासन प्रभावना आप की निश्रा में सम्पन्न हुई। पू. आचार्य श्री के संयम जीवन के 50 वर्ष की आ. श्री भुवन तिलक सूरीश्वरजी म.सा. के पावन पगल्या से पूर्णाहूति निमित्त करेली नगर में 55 छोड़ का उद्यापन, जिस नगर में 150 दीक्षायें हुई है ऐसे वातवरण में कमला बहन सोमचंदभाई के 5 पुत्र संयम के रंग में रंग गये ऐसा नगर __ अंजनशलाका, पूजन आदि हुए। पीपरिया, नरसापुर (आन्ध), Jain Education Intemational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.005142
Book TitleVishwa Ajayabi Jain Shraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal B Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year2010
Total Pages720
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size35 MB
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