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________________ યક્ષરાજશ્રી માણિભદ્રદેવ 585 % D पूर्णाहुति काव्य मंत्रम् श्री माणिभद्र वीरेन्द्र तपागच्छाधिष्ठायकम् । संघाभ्युदय क्षेमार्थ पूर्णाहुतिं समर्पये ॥१॥ अंतिम मंत्र हवनॐ ह्रीं श्रीं क्लौ ब्लूँ श्री माणिभद्र वीरं नमोऽस्तुते कर्तुः करयितुश्च शान्तिं तुष्टिं वृष्टिं ऋद्धिं वृद्धि बुद्धि सिद्धिं समृद्धिं कुरु कुरु ॐ स्वाहा-ॐ स्वाहा । ___ॐ श्री माणिभद्रवीराय धृत-शर्करा-पुगीफलादिपूरित फलं समर्पयामीति स्वाहा । __ अहीं चाटवामां घी, पुगीफल (सोपारी), पतासो, लाल मौली सूतथी लपेटीने घीथी भरीने उपरोक्त काव्य-मंत्र भणीने अंतिम आहुति आपवी । पछी गीतगान गावां-गवडाववां, संगीतकारोओ धून मचाववी । हवनकुंडमां अग्नि शांत करवा गुलाबजल छांटतां-छांटतां मंत्र भणवो । ___ मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूँ श्री मगरवाडा आगलोड, अवंतिपुर श्री माणिभद्रवीर कृपाकांक्षी कृपानिधान सर्वदुःखहर भोग-सुखं यश: संततिं ऋद्धिं वृद्धिं बुद्धिं सिद्धिं समृद्धिं द्रव्यं व्यापारवृद्धिं संघस्य सकुटुम्बस्य आरोग्यं राज्यसुखं सर्वजन वश्यं सर्व समीहितं देहि देहि स्वाहा । पछी आरती उतारवी । श्री माणिभद्रवीरनी आरती जय जय जय महावीर जय माणिभद्र देवा, सुरवर, नरवर, किन्नर करता तुज सेवा... जय जय जय देवा । त्रण भुवनना भूषण तमने पूजे सौ नरनार श्रद्धाथी जे समरे, तेनां दु:ख हरनार..... जय जय जय देवा । भूतप्रेतादि देवा तुम नामे, भागे भय पामी सप्त महाभय नावे, वंदु शिर नामी..... जय जय जय देवा । जिन शासनना रक्षक देवा छो अकावतारी समकित आपो अमने, छो आनन्दकारी.... जय जय जय देवा । श्याम सुवर्ण ने रक्त वरण छो, चार भुजा सारी गदा अंकुश ने डमरू, मुद्रा, अभय भारी.... जय जय जय देवा । जैन धर्म धोरी गुरुवर, जिनेन्द्रसूरि राजे पद्मसूरि तस शिष्य अमृत गुण गाजे... जय जय जय देवा । ___ अथ अपराध-क्षामणम् ॐ आज्ञाहीनं क्रियाहीनं मंत्रहीनं च यत्कृतम् । तत्सर्व कृपया देवः क्षमतां स सुरेश्वरः ॥१॥ आह्वानं नैवं जानामि न जानामि विसर्जनम् । ७ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005141
Book TitleYakshraj Shree Manibhadradev
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal B Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year1997
Total Pages860
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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