________________
યક્ષરાજશ્રી માણિભદ્રદેવ
583
अर्घ्य : तीर्थोदक चन्दन पुष्प धूपम् । दीपाक्षतं रम्य नैवेद्य देयम् । फलाष्टमं सुविहितो विधानम् । श्री माणिभद्राय ददेऽर्घ्यपूर्णम् ॥८॥
(इत्यष्टप्रकारी पूजा) ।
हवनकुंडमां अग्नि प्रगट मंत्र : ॐ रं रां री रै रौं र: नमो अग्नये नमो बृहद् भानवे नमोऽनन्ततेजसे नमोऽनन्तवीर्याय
नमोऽनन्तगुणाय नमोऽनन्तहिरण्यतेजसे नमो छागवाहनाय नमो हव्याशनाय अत्र
अग्निकुंडे अवतर-अवतर तिष्ठ-तिष्ठ प्रज्वलितो भव भव स्वाहा । हवन माटे : शमी वृक्ष = खीजडाना झाडनो चाटवो बनाववो । लम्बाई १७ इँचनो ।
विधि : अग्निकुंड समचोरस २१ x २१ इंच ऊंचाईमां नव (९) ईंचनो बनाववो । वच्चे कुंड समचौरस ईंच १३ x १३ चौडाई राखवी । कुंडमां कंकुनो साथियो करी चोखानो साथियो, उपर सोपारी, नागरवेलर्नु पान, केसर पुष्प द्वारा पूजन करी, कपूरनी गोटी मूकीने अगरबत्ती द्वारा उपरोक्त अग्नि प्रगटमंत्र भणतां करवी । लकडी पांच जातनी आँबानी, अशोकपालो, खीजडानी, पारसपीपली, वडनी लकडीना त्रणथी चार ईंचना टुकडा करीने राखवा । पाँच किलो लकडी हवन माटे तैयार राखवी, कुंडनी अग्नि मङ्गलदीपक द्वारा प्रगट करावी पछी कुंडमांथी अग्नि बहार आवे त्यारे आहुति आपवानी । ते पहेलां नहीं । १०८ मंत्रजापनी आहुति १०८ वार ज आपवी अने एक हजार उपरान्त जाप थाय तो दशांश भागे आहुति आपो । अंतमां पूर्णाहुति समये श्रीफलनो गोलो हजार उपरान्त आहुति आपो तो ज । आहीं तो मात्र १०८ वार आहुतिमां श्रुप (चाटवो-शुचि श्रुवा) इंच सत्तरनो लांबो जोई। चाटवाना आहुति आपो ते खानामां एक पान, सोपारी, पतासो, घीथी भरीने स्तोत्र श्री माणिभद्रवीरनुं बोलीने पछी कुंडमां पधरावे । सोपारी उपर सोना-चांदीनो वरख छापी केशर पुष्पथी पूजा करी पछी अग्निकुंडने समर्पित करे । पूर्णाहुतिनी छेल्ली सोपारी हवनकुंडमां पधराव्या पछी थोडीवार श्री माणिभद्रवीरनी धून मचाववी । गीत, गान, नृत्यादि कार्य करवां । आटली विधि पती गया पछी अग्निने शान्त करवा सारु अग्निने हलाववी नहि । मात्र गुलाबजल एक पुरुषे हथेलीमा लईने थोड़े-थोड़े छांटवू जेथी अग्नि शान्त थई जशे । गलाबजल छांटतां-छांटतां मंत्र त्रणवार भणवो । आरती चाल अथवा २१.१०८ दीपकनी पण उतारी शकाय । आरती उतार्या पछी क्षमापन प्रार्थना अने विसर्जनविधि करवी । हवनकुंडमां आहुति आपतां प्रथम श्री माणिभद्रवीरनी मूर्ति-यंत्र उपर वासक्षेप पुष्प (करेण-गुलाब) १०८ वार अगर लकडीना टुकडा १०८ करवा । ते पण आहुति पीठ हवनकुंडमां अकेक पधरावे । कोई विधिकारक पंचमेवानी १०८ गोळी बनावे पछी मंत्र १०८ वार भणतां आहुति साथे पण अकेक पधरावे । खीजडा या पलाश लकडीनो चाटवो (श्रुप) बनाववो ।
हवनकुंड : २१ x २१ ईंच समचौरस, ऊँडाई ९ ईंच । अन्दर १३ x १३ ईंचनी समचौरस ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org,