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यही कारण है कि बिखरते समाज को एक करने की दिशा में आचार्य नित्योदय सागर सूरीश्वर महाराज के प्रयासों को हर जगह काफी सराहना मिली है और यह उनकी धार्मिक चेतना एवं तपस्या की प्रबलताका ही परिणाम है कि अपनी बात पर अडिग रहने वाले लोग भी आचार्य के आते ही उनेक सामने नतमस्तक होकर समाज के हितमें अपने कदम पीछे ले लेते हैं।
गुजरात के सुरेन्द्र नगर के पास आदरियाणा में विक्रम संवत १९९८ में मगसर सुद २ कोशनिवार के दिन २१ नवंबर १९४१ को श्रीमती मरघाबेन और तलखीभाई के घर जन्मे मासूम नटवरलाल के किसी भी परिजन को यह कतई पता नहीं था कि सिर्फ १४ वर्ष की उम्र में ही इस बालक के कदम संन्यास लेक संसार का कल्याण करने की तरफ बढ़ेंगे। विक्रम संवत २०१२ में वैशाख वद ३ को २६ मई १९५६ का शनिवार बालक नटवरलाल के लिए सांसारिक सुखों के त्याग का दिन बनकर आया। इसी दिन गुजरात के चाणस्मा में दीक्षा लेकर बालक नटवरलाल नित्योदयसागर बने और आचार्य दर्शन सागर सूरीश्वर महाराज को गुरुदेव के रूप में स्वीकार करने के साथ ही प्रण लिया कि वे अपने पूरे साधु जीवन के दौरान समाज के लिए कुछ ऐसा खास किस्म का नय काम करेंगे जिससे समाज बिखरने के बजाए एक हो और सामाजिक विवाद के रास्ते नेक हो ।
आचार्य नित्योदय सागर तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान के हजारों परिवारों में एकता के बीज बोने और सैकडों संस्थाओं को समर्पण के सूत्र में पिरोने वाले संत के रूपमें जाने जाते हैं। संगठन उनका सबसे पृरिय विषय है और एकता का प्रयास उनकी पहली कोशिशष । जिनशासन की सेवा में इस तरह का एक अनोखा योगदान देनेवाले संत नित्योदय सागर के प्रयासों को प्रबलता प्रदान करने में उनके शिष्य आचार्य चंद्रानन सागर सूरीश्वर महाराज का भी जबरदस्त योगदान है।
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ધન્ય ધરા
आचार्य नित्योदय सागर सूरीश्वर महाराज मानते हैं कि एकता ही जीवन की सफलताकी चाबी है जिसके जरिए दुनिया के सीसी भी मुश्किल काम को आसान किया जा सकता है। हालांकि यह भी मानते हे कि सामाजिक जीवन में एकता इतनी आसान नहीं है लेकिन उनकी यह भी मानता है कि यह कोई इतना मुश्किल काम भी नहीं है जिसे आसानी से नहीं किया जाए। आचार्य नित्योदय सागर सूरीश्वर महाराज की एक मान्यता यह भी है कि कोई भी बात बातों से ही बिगड़ती है और बिगड़ी हुई बात बातों से ही संवरती है। अपनी बातों में पूरी मजबूती और प्रबल शक्ति रखने के साथ वाणी में कठोरता से समाज को एक एकता परोसने वाले आचार्य नित्योदय सागर सूरीश्वर महाराज के जीवन पर निगाह डालें तो लगता हैं कि उनका पूरा जीवन एकता और संगठन के लिए ही बना है। दिव्य संगठक और एकता के धनी आचार्य नित्योदय सागर सूरीश्वर महाराज के पास जो भी 'लोग आते हैं उनमें ज्यादातर वे होते हैं जिन्हें संगठन की आशीष और एकता का आशीर्वाद चाहिए, क्योंकि आज के समाज में सबसे ज्यादा जरूरत भी इसी बात की है और इस जरूरत को वर्षों पहले नित्योदय सागर महाराज ने महसूस कर लिया था इसलिए वे शुरु से इसी दिशा में जुटे रहे, और यही वजह है कि उन्हें जैन धर्म के संगठ प्रेमी और एकता के आचार्य के रूप में जाना जाता 1 सौजन्य : श्री खिवान्दी जैन संघ खिवान्दी ( राजस्थान ) ૫.પૂ. આચાર્ય શ્રીમદ્ વિજય નરચંદ્રસૂરીશ્વરજી મહારાજ સાહેબ
સંયમનિષ્ઠ મહાતપસ્વી પૂ. પંન્યાસશ્રી કાંતિવિજયજી ગણિવર્ય સં. ૨૦૧૧ની સાલમાં ખંભાત મુકામે ચાતુર્માસ બિરાજમાન હતા. હળવદનિવાસી સુશ્રાવક દીપચંદભાઈ (બાબુભાઈ)એ પોતાના નાના પુત્ર નગીનદાસને પૂ. પંન્યાસજી મ. પાસે અભ્યાસ માટે મૂક્યો. સ્વાધ્યાય૨ત અને ત્યાગવૈરાગ્યની મૂર્તિ સમા પૂ. પંન્યાસ મ. પાસે અભ્યાસ કરતાં કરતાં
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