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________________ ८५८ जाए तो आचार्य नित्योदय सागर सूरीश्वर महाराज एकमात्र संत हैं जो सामाजिक चेतना और संगठनप्रियता की वजह से सबसे ज्यादा लोकप्रिय | वे मानते हैं कि समाज जब तक पूरी तरह एक होकर धर्म के प्रति जागृत नहीं होता तब तक समाज में कभी भी सामूहिक बदलाव नहीं आ सकता । अक्सर यह देखा गया है कि विबिन्न समुदायों और सामाजिक संगठनों में मतभेद की वजह से एक गहरी खाई पड़ जाती है, वहाँ आचार्य नित्योदय सागर सूरीश्वर महाराज की जरूरत महसूस की जाती रही है । अपनी वाणी के और प्रबल इच्छाशक्ति के साथ-साथ प्रखर चेतना के बलबूते पर पूज्य गुरुदेव दर्शन सागर सूरिश्वर महाराज के प्रिय शिष्य आचार्य नित्योदय सागर सूरीश्वर महाराज ने सैंकड़ों संस्थाओं, कई गाँवों और अनेक परिवारों के वर्षों पुराने विवाद चुटकी में सुलसझाए हैं। यही कारण है कि बिखरते समाज को एक करने की दिशा में आचार्य नित्योदय सागर सूरीश्वर महाराज के प्रयासों को हर जगह काफी सराहना मिली है और यह उनकी धार्मिक चेतना एवं तपस्या की प्रबलताका ही परिणाम है कि अपनी बात पर अडिग रहने वाले लोग भी आचार्य के आते ही उनेक सामने नतमस्तक होकर समाज के हितमें अपने कदम पीछे ले लेते हैं । गुजरात के सुरेन्द्र नगर के पास आदरियाणा में विक्रम संवत १९९८ में मगसर सुद २ कोशनिवार के दिन २१ नवंबर १९४१ को श्रीमती मरघाबेन और तलखीभाई घर जन्मे मासूम नटवरलाल के किसी भी परिजन को यह कतई पता नहीं था कि सिर्फ १४ वर्ष की उम्र में ही इस बालक के कदम संन्यास लेक संसार का कल्याण करने की तरफ बढ़ेंगे। विक्रम संवत २०१२ में वैशाख वद ३ को २६ मई १९५६ का शनिवार बालक नटवरलाल के लिए सांसारिक सुखों के त्याग का दिन बनकर आया। इसी दिन गुजरात के चाणस्मा में दीक्षा लेकर बालक नटवरलाल नित्योदयसागर बने और आचार्य Jain Education Intemational જિન શાસનનાં दर्शन सागर सूरीश्वर महाराज को गुरुदेव के रूप में स्वीकार करने के साथ ही प्रण लिया कि वे अपने पूरे साधु जीवन के दौरान समाज के लिए कुछ ऐसा खास किस्म का नय काम करेंगे जिससे समाज बिखरने के बजाए एक हो और सामाजिक विवाद के रास्ते नेक हो । आचार्य नित्योदय सागर तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान के हजारों परिवारों में एकता के बीज बोने और सैकडों संस्थाओं को समर्पण के सूत्र में पिरोने वाले संत के रूपमें जाने जाते हैं। संगठन उनका सबसे पृरि विषय है और एकता का प्रयास उनकी पहली कोशिशष । जिनशासन की सेवा में इस तरह का एक अनोखा योगदान देनेवाले संत नित्योदय सागर के प्रयासों को प्रबलता प्रदान करने में उनके शिष्य आचार्य चंद्रानन सागर सूरीश्वर महाराज का भी जबरदस्त योगदान है। आचार्य नित्योदय सागर सूरीश्वर महाराज मानते हैं कि एकता ही जीवन की सफलताकी चाबी है जिसके जरिए दुनिया के सीसी भी मुश्किल काम को आसान किया जा सकता है। हालांकि यह भी मानते हे कि सामाजिक जीवन में एकता इतनी आसान नहीं है लेकिन उनकी यह भी मानता है कि यह कोई इतना मुश्किल काम भी नहीं है जिसे आसानी से नहीं किया जाए । आचार्य नित्योदय सागर सूरीश्वर महाराज की एक मान्यता यह भी है कि कोई भी बात बातों से ही बिगड़ती है और बिगड़ी हुई बात बातों से ही संवरती है। अपनी बातों में पूरी मजबूती और प्रबल शक्ति रखने के साथ वाणी में कठोरता से समाज को एक एकता परोसने वाले आचार्य नित्योदय सागर सूरीश्वर महाराज के जीवन पर निगाह डालें तो लगता हैं कि उनका पूरा जीवन एकता और संगठन के लिए ही बना है। दिव्य संगठक और एकता के धनी आचार्य नित्योदय सागर सूरीश्वर महाराज के पास जो भी लोग आते हैं उनमें ज्यादातर वे होते हैं जिन्हें संगठन की आशीष और एकता का आशीर्वाद चाहिए, क्योंकि आज के समाज में सबसे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005121
Book TitleJinshasan na Zalhlta Nakshatro Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal B Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year2011
Total Pages620
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size37 MB
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