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________________ ઝળહળતાં નક્ષત્રો 339 (४) क्षमो - क्षमो : मोक्ष-मोक्ष (नमामि, रखमामि एवं मिच्छामि दुक्कडम्) रचयिता : प.पू. जयदर्शन विजयजी म.सा. (नेमिप्रेमी) 1 क्षमो तो सौने गमो, विषय-कषाय-देह दमो, देव-गुरुने सदा नमो.......................... मोक्ष माटे क्षमो क्षमो। 2 क्षमापना छे आराधना, वेर-विरोध विराधना, करवा शुद्ध भावना ...........................टालो अविधि-आशातना। 3 पर्युषणनी उपासना, हरे कषायनी वासना, छंडी छ जीव यातना ......................... अहिंसा-मैत्री छे साधना। उपकार-अपकार-विपाक क्षमा, वचन अने धर्मक्षमा, हार्दिक पंच ए क्षमा........ .... क्षमामूर्तिए भाखी क्षमा। 5 क्षमा राखे सत्वमना, क्षमापना करे मुक्तमना, क्षमा आपे उदारमना ........................ प्रभुनी आज्ञा क्षमापना। 6 भूलq छद्मस्थ स्वभाव, पापीनो करजो ना दुर्भाव, नित्य वहावो उत्तमभाव ................ भूलेलाने आपो सद्भाव। 7 पापी प्रति झरती करुणा, दोषीने आँख-मीचामणा, वेरीने वेर वलामणा ...... ......... ए छे खमतखामणा। 8 कोईनी साथे करी वेर, शाने वधार, जीवनमां झेर? करी नाखो विचार फेर.......... कुदरतने त्यां नहीं अंधेर। 9 बदलो वाळी शुं करवू ? क्रोधे जीवी शाने मरवू ? जेने संसार सागर छे तरवू .... सदाय समता ध्यान धरईं। 10 काल पलटो खाय छ, पर्याय पण बदलाय छे, नवु पुराणुं थाय छे ................ प्रतिपल शुभारंभ कहेवाय छ। 11 खमामि-मिच्छामि-नमामि, जीव्हा उपर वसे अमी, पापदोषोने जे नाखे वमी...........ते व्यक्ति जाय सौने गमी। 12 मिच्छामि दुक्कडम् पले-पले, पापोंथी जेनुं दिलडु वळे, दोषों जेने खूब कड़े................ धर्माराधना तेनी फले। 13 पश्चातापने प्रायश्चित्त, आलोचनायुक्त चोक्खु चित्त, दुनिया आखी जेनी मित्त ....... पामी गया जे जीववानी रीत। 14 शांत-प्रशांत-प्रशम-उपशम, शांति-समाधि-समता हरदम, सत-सत् हरकदम ................जीवनशिल्प बने उत्तम। 15 राग-द्वेषनी मायाजाळ, ज्यां वृद्धो पण बन्या बाल, पाप-सुखमा पाडी लाल ........... तेनी करशे कोण संभाळ? 16 जुवो जुवो के, निसर्ग, जेमा छे ना कोई संघर्ष, वज कुदरत नहि कर्कश ............... गुणो देखी पामो हर्ष। 17 सारुं-नरसुं, सज्जन दुर्जन, वगाडयूँ ना पोतानुं मन, नवकारमंत्रनुं लई शरण ............. पवित्र बनावो स्वजीवन। 18 मोटा न राखे खोटा तंत, तंत-प्रेमी बने ना संत, भूत-भूलोनो जे लावे अंत ............. जगमां बने तेज महंत। 19 दुःखे वीत्यो विराट काल, हजु शानी हरण फाल ? पर निमित्ते स्वना बाळ ........... आत्मधर्मनी कर संभाल। 20 विघ्नो वच्चे पण अणनम, सर्व संजोगोमां उपशम, धर्म मार्गे जे चाले प्रथम.............. तेवा वीरने क्रोड़ो नमन। 21 महाभारतना सत्यानाश, जीवता निर्दोषोनी लाश, केवो भयानक छे इतिहास जाणे मानवमां दानववास। 22 TIT FOR TAT लौकिक न्याय, LET GO अलौकिक न्याय LET GOD दिव्य न्याय ......... पछी रहेशे NO अन्याय। 23 BATTLEMENT नहीं SETTLEMENT सुख-शांति PERMANENT करुणा मैत्री EVERY MOMENT ........ बनी रहेशे अमर EVENTI 24 FORGIVENESS IS TRUE SUCCESS आनंद-मंगलनो संदेश, प्रसार पामो देशोदेश.... विदेशमां न रहेशे संकलेश। 25 WHEREVER IS SRI NAVAKAR, PEACE PROGRESS AND NO WAR सादगी अने सदाचार असार तत्त्वोंमां ए छे सार। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005120
Book TitleJinshasan na Zalhlta Nakshatro Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal B Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year2011
Total Pages720
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size35 MB
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