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जग आशा जंजीर की गति उलटी कुल मोर, झको धावत जगतमें
रहे छूटो इक ठोर ||साखी।। अवधू ! क्या सोवे तन मठमें? जाग विलोकन घटमें, अवधू ! क्या सोवे तन मठमें? तन मठ की परतीत न कीजें, ढहि परे एक पल में;
हलचल मेटि खबर ले घट की.
चिह्न रमतां जल में...१ मठ में पंच भूत का वासा, सासा धूत खवीसा;
छिन छिन तोही छलन कुं चाहे,
समजे न बौरा सीसा...२ शिर पर पंच वसे परमेसर, घट में सूछम बारी;
आप अभ्यास लखे कोई विरला,
निरखे 'धू' की तारी...३ आशा मारी आसन धरी घट में, अजपाजाप जगावे
आनंदघन चेतनमय मूरति, नाथ निरंजन पावे...४
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