________________
Love
alone
can transform the
world.
सुहागण ! जागी अनुभव: प्रीत सुहागण ! जागी अनुभव प्रीत, निन्द अनादि अग्यान की मिट गई निज रीत... १
सुहागण ! जागी अनुभव प्रीत....
घट मंदिर दीपक कियो
सहज सुज्योति सरूप,
आप पराई आप ही,
ठानत वस्तु अनूप... २
सुहागण ! जागी अनुभव प्रीत....
कहाँ दिखावुं और कुं?
कहाँ समजाउं भोर ?
तीर
अचूक है प्रेम का, लागे सो रहे ठोर... ३
सुहागण जागी अनुभव प्रीत....
नादविलुद्धो प्राणकुं. गिने न तृण मृगलोय :
आनंदघन प्रभु प्रेम की,
अकथ कहानी कोय...४
सुहागण जागी अनुभव प्रीत....
10