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________________ 1 अहिंसा, सभ्यता civilization का सर्वोपरि और सर्वोकुष्ट दरजा है । यह निर्विवाद सिद्ध है और जब कि यह सर्वोपरि और सर्वोत्कृष्ट दरजा जैन धर्मका मूल ही है, तो इसकी और सर्वाङ्ग सुन्दरता के साथ यह कितना पवित्र होगा, यह आप खुदही समझ सक्ते हैं । जैनी लोग अहिंसा देवीके पूर्ण उपासक होते हैं और उनके आचार बहुत शुद्ध और प्रशंसनीय होते हैं, उनके बारह व्रत और सप्त व्यसन वगैरह बाबतों के जाननेसे मुझे बहोत खुशी हुई और उनके चारित्रकी तरफ मेरे दिलमें बहुत आदर उत्पन्न हुवा है, जैन मुनियों के आचार देखनेसे मुझे वे अति कठिन जान पडते हैं, लेकिन वो ऐसे तो पवित्र हैं कि हरएकके अन्तःकरण में वे बहुत भक्तिभाव और आदर उत्पन्न करते हैं । ऐसेही चरित्र सर्व साधारणपर आश्चर्यजनक प्रभाव पडता है ! मेरे ऊपर उनके चारित्र बलसे उनके लेखों और व्याख्यानोंका सुभाग्यवश असर हुवा है, और में इस निश्चयपर आपहुंचा हूं कि मैं भी जहांतक बने जैन धर्मके मुख्य नियमों के अनुसार चलुं । उपाध्यायजी श्री इन्द्रविजयजी महाराजने मुझे जैन मन्दिरॉके दर्शन कराये हैं और मैं भगवान के दर्शनोंसे अपनेको कृतार्थ समझता हूँ । मैंने आगे कभी जैन तीर्थ करके दर्शन नहीं किये थे । मैंने कई बातें यहांपर बहुत सार - गर्भित और दिलचस्प पाई। महाराजके पास मात्र ही ३ दिनमें मैंने जितना ज्ञान पाया है उतना मैंने आजतक पहिले दासिल नहीं किया. । " ता. १६-८-१४ Jain Education International [68] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005007
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherHarshchandra Bhurabhai Shah
Publication Year1915
Total Pages420
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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