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________________ जय वीयशय हे वीतराग जगदगुरु ! आप मेरे दिल में विजय पाएँ । हे भगवंत ! आप के प्रभाव से मुझे हो.......भवनिर्वेद.. जयवीयराय जगगुरु सुखमय भी संसार असा हे भगवंत ! मेरे जीवनरथ के सकानी । बनकर कर्मयुद्ध को जीताईए । PAVAN 0600 भवनिर्वेद उन्मार्गमार्गानुसारिता लोकविरुद्धत्याग 2 मश्करी कलह मन्त्री निन्दा धर्मा की हांसी क्रपण दान ईर्ष्या बहुजनविरुद्ध का संग देशाचारोल्लंघन उद्भट भोग परसंकटतोष आदि लोकविरुद्ध कार्यों का त्याग (२) मार्गानुसारिता : कलह-निर्दयता-अनीति-ईर्ष्या आदि को छोड मैत्री-दान-नीति-शुभेच्छादि मार्गग्रहण । । अनीति नीति आज्ञा स्वीकार गुरुजनपूजा पितृसेवा विटम्बणावाले सुखमय भी संसार पर ग्लानि । निन्दा आदि का त्याग । सुचारु भोजनवस्त्रादिभक्ति, रामवत् आज्ञास्वीकार । उपकार हितोपदेश आदि भावोपकार । (१) भवनिर्वेद : रागादिरोग व जन्ममरणादि (४) लोकविरुद्ध : कार्यो (५) गुरुजनपूजा : मातापितादि वडिलजन की सेवा (६) दान-सेवा-सहायादि द्रव्य रामचन्द्र दृष्या शा शुभेच्छा इष्टफलसिद्धि परार्थकरण परो १३) देवदर्शनादि : धर्म व चित्तशान्ति हो इसलिए आजीविकादि इष्ट की सिद्धि। मसमाधि हिताप आजीविका समाधि देवदर्शन Forprivate & FES
SR No.004986
Book TitlePratikraman Sutra Sachitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages124
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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