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________________ श्री चन्द्रप्रभ विद्यास्तवः ॐ चन्द्रप्रभ । प्रभाधीश । चन्द्रशेखरचन्द्रभूः । (१) चन्द्रलक्ष्माङ्क । चन्द्राङ्ग । चन्द्रबीज । नमोस्तुते ॥१॥ ॐ हीं श्रीं अर्ह श्री चन्द्रप्रभ ! ह्रीं श्रीं कुरु कुरु स्वाहा । इष्यसिद्धि-महासिद्धितुष्टिपुष्टिकरो भव ॥२॥ द्वादशसहस्रजप्तो वांछितार्थ फलप्रदः । महित्वा त्रिसंध्यं जापो, सर्वाधिव्याधिनाशनः ॥३॥ सुरासुरेन्द्रमहितः, श्री पांडवनृपस्तुतः । श्री चन्द्रप्रभतीर्थेशः, श्रियं चन्द्रोज्जवलां कुरु श्री चन्द्रप्रभविद्येयं, स्मृता सद्यं फला मता । सर्वाधिव्याधिविध्वंसकारिणी मे वरप्रदा ॥५॥ श्री चन्द्रप्रभ विद्याॐ ही श्री अहँ चन्द्रप्रभ ह्रीं श्रीं कुरु कुरु स्वाहा । (सर्वकार्यमां साधक ज्वाला मालिनी मन्त्र) ॐ ज्वालामालिनी क्षां क्षी झू क्षौं क्षं क्षः हाः दुष्ट क्षमल्व्यू ग्रहान् स्तंभय स्तंभय ठं ठं हां आं क्रौं क्षी ज्वालामालिन्याज्ञापयति हुँ फट् घे घे। ॥४ ॥ .७६. For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004960
Book TitleMaro Swadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaratnavijay
PublisherShraman Seva Parivar
Publication Year
Total Pages244
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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