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________________ ॥ श्री शत्रुञ्जय लघुकल्प ॥ अइमुत्तय केवलिणा कहिअं सेत्तुंजतित्थमाहप्पं । नारयरिसिस्स पुरओ, तं निसुणह भावओ भविआ सेतुंजे पुंडरीओ सिद्धो, मुणिकोडिपंच संजुत्तो । चित्तस्स पुण्णिमाए, सो भण्णइ तेण पुंडरीओ नमि - विनमिरायाणो, सिद्धा कोडिहिं दोहिं साहूणं । तह दविडवारिखिल्ला, निव्वुआ दस य कोडीओ पज्जुन्न-संबपमुहा, अद्भुट्ठाओ कुमारकोडीओ । तह पंडवा वि पंच य, सिद्धिं गया नारयरिसी य थावच्चासुय सेलगाय, मुणिणो वि तह राममुणी । भरहो दसरहपुत्तो, सिद्धा वंदामि सेतुंजे अन्ने वि खवियमोहा, उस भाइ-विसाल-वंससंभूआ । जे सिद्धा सेत्तुंजे, तं नमह मुणी असंखिज्जा पन्नासजोयणाई, आसी सेतुंज - वित्थरो मूले । दस जोयण सिहरतले, उच्चत्तं जोयणा अट्ठ जं लहइ अन्न तित्थे, उग्गेण तवेण बंभचेरेण । तं लहई पयत्तेणं, सेत्तुंजगिरिम्मि निवसंतो 118 11 ॥२॥ ॥३॥ 11811 ॥५॥ ॥६॥ ॥७॥ ॥८॥ ३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004960
Book TitleMaro Swadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaratnavijay
PublisherShraman Seva Parivar
Publication Year
Total Pages244
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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