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________________ द्वात्रिंशिका • ધાત્રિશિકાની નયલતા ટીકામાં દિમ્બર સાહિત્યની સૂચિ • 'दिक्पटानामपि ग्रन्था नयलतोद्धृता ननु । तन्नामानि प्रदर्श्यन्ते स्वरादिक्रमतोऽधुना ।। १. अध्यात्मरहस्य | २१. तात्पर्यवृत्ति |४०. पद्मनन्दि२. आत्मानुशासन २२. त्रिलोकप्रज्ञप्ति पञ्चविंशिका ३. आप्तमीमांसा | २३. त्रिलोकसार ४१. पद्मप्राभृतक ४. आप्तमीमांसावृत्ति २४. दर्शनप्राभृत ४२. परीक्षामुख ६. इष्टोपदेश २५. द्वात्रिंशतिका | ४३. पात्रकेशरिस्तोत्र ७. कषायप्राभृत (अमितगतिकृत) |४४. प्रमेयकमलमार्तण्ड ८. कषायप्राभृतचूर्णि २६. द्वादशानुप्रेक्षा ४५. प्रवचनसार ९. कषायप्राभृतवृत्ति | २७. धवला ४६. प्रवचनसारवृत्ति १०. कामन्दकीयनीतिसार | २८. नयचक्र | ४७. बृहत्स्वयम्भूस्तोत्र ११. कार्तिकेयानुप्रेक्षा | २९. नयविवरण | ४८. बृहद्रव्यसङ्ग्रह १२. गोम्मटसार ३०. नाटकसमयसारकलश | ४९. बृहद्व्य सङ्ग्रहवृत्ति १३. गोम्मटसारवृत्ति ३१. नालडियार | ५०. बृहन्नयचक्र १४. जयधवला ३२. नियमसार ५१. बृहन्नयचक्रवृत्ति १५. जीवतत्त्व- ३३. नीतिवाक्यामृत | ५२. बोधप्राभृत प्रदीपिकावृत्ति ३४. न्यायकुमुदचन्द्र | ५३. बोधिचर्यावतार १६. ज्ञानार्णव (शुभ.) | ३५. न्यायविनिश्चय ५४. भगवती आराधना १७. तत्त्वानुशासन | ३६. न्यायविनिश्चयविवरण | ५५. भावप्राभृत १८. तत्त्वार्थश्लोकवार्त्तिक | ३७. पञ्चसङ्गहवृत्ति | ५६. भावप्राभृतवृत्ति १९. तत्त्वार्थसार (दिगम्बरीय) | ५७. मूलाचार २०. तत्त्वार्थसूत्रवृत्ति ३८. पञ्चाध्यायीप्रकरण ५८. मूलाराधना (श्रुतसागरीय) ३९. पञ्चास्तिकाय ५९. मोक्षप्राभृत ६०. युक्त्यनुशासन ६१. योगसारप्राभृत ६२. रत्नकरण्डक श्रावकाचार ६३. रत्नकरण्डक श्रावकाचारवृत्ति ६४. रत्नसार |६५. राजवार्तिक ६६. लिङ्गप्राभृत ६७. विमानपङ्क्त्युपाख्यान ६८. शीलप्राभृत | ६९. श्रावकाचार ७०. षट्खण्डागम ७१. षटखण्डागमधवला वृत्ति ७२. समयसार |७३. समयसारकलश ७४. समयसारवृत्ति ७५. समाधितन्त्र ७६. सर्वार्थसिद्धि ७७. सुभाषितरत्नमाला ७८. सूत्रप्राभृत ૧. “કાત્રિશિકા પ્રકરણની નયલતામાં સાક્ષીરૂપે ઉદ્ધત કરેલા દિગંબર સાહિત્યને પ્રસ્તુત નોંધમાં દર્શાવેલ છે. તેના પૃષ્ઠ નંબર વગેરેની માહિતી માટે ભાગ-૮, પરિશિષ્ટ-૬માં જુઓ પૃ.૨૨૧૯ થી ૨૨૪૮. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004941
Book TitleDwatrinshada Dwatrinshika Prakran Part 4
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorYashovijay of Jayaghoshsuri
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages378
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size22 MB
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