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________________ निषेध 114 .द्वात्रिशि४२९ तथा 'नयलता' व्यायामा विदा पर्थोनी याही . निरुद्धचित्त जुओ चित्त १०१६, १०२२, १०३०-१०३१, १०३३निरुपक्रमकर्म जुओ कर्म १०३४, १११३, १२२६-१२२८, १२४२निरुपक्रमयोग जुओ योग (इच्छादि) १२४४, १२८६-१२८७, १४५०, १४६०, निरपाययोग जुओ योग (इच्छादि) १४८१, १६३०, १६४८-१६४९, १८७३, निरोध ७४१,७६०,८२७ १८८३, १८९०, १८९५, १९०७ निरोधपरिणाम जुओ परिणाम (अवस्थादि) | निर्वेदनी कथा (निर्वेजनीकथा) जुओ कथा-धर्मकथा निरोधसंस्कार ७८६, १२४३, १६७४-१६७६ | निवृत्ताधिकार ७०८, ७०९, ८२१, ९७२, ९९९, + जुओ संस्कार ११३६, १३९३ निर्गुणध्यान जुओ ध्यान निर्वृत्तिक समाधि जुओ समाधि (दृश्यानुविद्धादि) निर्ग्रन्थ जुओ चारित्र निश्चय १३० निर्ग्रन्थपञ्चक १९५१ निश्चयकथा जुओ कथा (ग्रन्थान्तरगत) -संकीर्णकथा निर्ग्रन्थव्युत्पत्ति १८८१ निश्चयनय जुओ नय (ज्ञाननयादि) निर्जरा जुओ कर्मनिर्जरा निश्चयसम्यक्त्व जुओ सम्यक्त्व (द्रव्यादि) निर्बीजनिरोधपरिणाम जुओ ४७९ परिणाम (अवस्थादि) निरोधपरिणाम | निष्कामता १४९३ निर्बीजयोग जुओ योग (इच्छादि) निष्पन्नयोग (निष्पन्नयोगी) जुओ योगी निर्बीज समाधि जुओ समाधि (सम्प्रज्ञातादि) निष्फलारंभ जुओ भवाभिनन्दिलक्षण निरवद्य भाषा जुओ भाषा नीचैर्गोत्रक्षयोपाय १३१९ निर्वाणसाधनी जुओ पूजा नीवरणपञ्चक ८६२ निर्वाणाशय ७१६ नेति नेति निर्वासन समाधि जुओ समाधि (दृश्यानुविद्धादि) । नैगमनय जुओ नय (नैगमादि) निर्विकल्प समाधियोग जुओ समाधियोग (दृश्यानुविद्धादि) नैगमनयसम्मता हिंसा जुओ हिंसा (नयसंबंधी) निर्विकल्प समाधि जुओ समाधियोग (सम्प्रज्ञातादि) | नैयायिकमान्य तत्त्व जुओ तत्त्व निर्विचारसमाधि जुओ समाधियोग (सम्प्रज्ञातादि) - | नैयायिकमान्य मुक्ति जुओ मुक्ति सम्प्रज्ञातसमाधि नैरात्म्य १७०२-१७२५,१७६५, १७७८ निर्विचारसमापत्ति जुओ समापत्ति नैरात्म्यदेशना जुओ देशना निर्वितर्क समाधि जुओ समाधियोग (सम्प्रज्ञातादि) - | नैरात्म्यवादी जुओ वादी सम्प्रज्ञातसमाधि नैवेद्य ३५१ निर्वितर्कसमापत्ति जुओ समापत्ति न्याय ३०४, १४५२ निर्वितर्कसम्प्रज्ञातसमाधि जुओ समाधियोग (सम्प्रज्ञातादि) - | नैश्चयिकशुद्धि जुओ शुद्धि सम्प्रज्ञातसमाधि | नैश्चयिकीसर्वसम्पत्करी भिक्षा जुओ भिक्षा-सर्वसम्पत्करी भिक्षा निर्वेजनी कथा जुओ कथा-धर्मकथा पञ्चमगुणस्थान जुओ गुणस्थानक निर्वेद ४४०, ६३४-६३५, ६३९-६४०, | पञ्चोपचारा पूजा जुओ पूजा ६५६-६५७, ६७०-६७१, ६७९, १००७, पण्डितलक्षणवैविध्य १८७७ Jain Education International For Private & Personal Use Only १३४८ www.jainelibrary.org
SR No.004938
Book TitleDwatrinshada Dwatrinshika Prakran Part 1
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorYashovijay of Jayaghoshsuri
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages478
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
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