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________________ ७४ चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ शिष्य श्रीवादी देवसूरिजीने ललितविस्तराकी पंजिका और यतिदिनचर्या में चार थुइ कथन करी है, तथा नवांगी वृत्तिकार श्रीअभयदेवसूरिजी के शिष्य श्रीजिनवल्लभसूरिजीने समाचारीमें चार थुइ कथन करी है, तथा कलिकाल सर्वज्ञ श्रीहेमचंद्रसूरिजीनें योगशास्त्रमें चार थुइ कथन करी है, तथा श्रीधर्मघोषसूरिजीने संघाचारवृत्तिमें चार थुइ कथन करी है, तथा श्रीकुलमंडनसूरिजी तथा श्रीसोममसुंदरसूरिजी तथा श्रीदेवसुंदरसूरिजी तथा श्रीनरेश्वरसूरिजी तथा श्रीभावदेवसूरिजी तथा श्रीतिलकाचार्यजी तथा श्रीजिनप्रभसूरिजी फुरोज बादशाहका प्रतिबोधनेवाला तथा श्रीजयचंद्रसूरिजी इनोने क्रमसें विचारामृतसंग्रहमें अपनी अपनी रची तीन समाचारीयोंमें, यतिदिनचर्या में, समाचारीस्वकीयमें, विधिप्रपामें, प्रतिक्रमणा गर्भित हेतु ग्रंथ में, चैत्यवंदनामें चार चार थुई कहनी कथन करी है. तथा श्रीमानविजय उपाध्यायजीने तथा श्रीमत्यशोविजय उपाध्यायजीने तथा श्रीनमि नामा साधुने तथा तरुण प्रभसूरिजीने क्रमसें धर्मसंग्रहमें, प्रतिक्रमणा हेतुगर्भितमें, षडावश्यकमें, षडावश्यक बालावबोधमें, चार थुई कहनी कही है, इत्यादि दूसरेभी अनेक आचार्योने चार थुई कहनी कही है, इन सर्व आचार्योकी गुरुपरंपरा और शिष्यपरंपरासें हजारो आचार्योनें चार थुई कहनी कही है, इन सर्व आचार्योने चार थुई मान्य करी है. इस वास्ते हमकों बडा शोक उत्पन्न होता है के श्रीजिनशास्त्रोंके और हजारो आचार्योके और श्रीसंघके विरुद्ध पंथ चलानेवाले श्रीरत्नविजयजी और श्रीधनविजयजी इनका क्योंकर कल्याण होवेगा ! और इनोंका कहना मानने वाले भोले श्रावकोंकीभी क्या दशा होवेगी? अथाग्रे कितनेक पूर्वोक्त ग्रंथोका पाठ लिखते है. जिसके वांचनेसे भव्यजीवोंकों मालुम हो जावे के, श्रीरत्नविजयजी अरु श्रीधनविजयजी जो चौथी थुइका निषेध करते है, सो बडा अन्याय करते है ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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