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चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ शास्त्रोंसे और पूर्वाचार्योकी समाचारीयोंसे विरुद्ध है। इसके वास्ते जैनधर्मी पुरुषोंकों इनकी श्रद्धा न माननी चाहिये । कदाचित् पूर्वकालमें अजाण पणेसें मानने में आई होवे तो, वो तीन करण अरु तीन योगसें वोसरा वणी चाहीयें, क्योंके ? एकतो जैनशास्त्र विरोधी, दूसरा पूर्वाचार्योकी समाचारियोंका विरोधी, तीसरा चतुर्विध श्रीसंघका विरोधी यह विरोध करणेवाला कदापि संसार समुद्रसें न तरेंगा।
(२३) पूर्वाचार्योंका विरोधी इसी तरें होता है, के एक श्रीहरिभद्रसूरि १४४४ ग्रंथोके कर्ता, दूसरा श्रीनेमचंद्रसूरि प्रवचनसारोद्धार ग्रंथका कर्ता, तीसरा श्रीसिद्धसेनसूरिप्रवचनसारोद्धारकी टीकाका कर्ता, चौथा श्रीबप्पभट्टसूरि आम राजाकों प्रतिबोध करणेवाला, तिनोने चौवीश तीर्थंकरोंकी एकेक थुइके साथ तीनती न थुइ दूसरी करी है । तिसमें एक सर्वजिनोकी, एक श्रुतज्ञानकी अरु एक शासनदेवताकी इसीतरें छानवे ९६ थुइ करी है, जिनका जन्म विक्रम संवत् ८०२ की सालमें हुआ है । तथा दूसरा श्रीजिनेश्वरसूरिका शिष्य और नवांगी वृत्तिकार श्रीअभयदेवसूरिका गुरुभाइ तिसने शोभन स्तुतिमें चोवीशजिनके संबंधसें चौवीश चोकडे छानवे थुइ करी है इस्से श्रीअभयदेवसूरिजी नवांगी वृत्तिकारक और तिनके गुरु श्रीजिनेश्वरसूरि प्रमुख गुरुपरंपरायसें सर्व चार थुइ मानतेथे । जेकर चौथी थुइ पूर्वोक्त पुरुषो नही मानतेथे जैसा कहेगे तो तिनके शिष्य और गुरु भाई किस वास्ते चौथीथुइकी रचना करते ? तथा उत्तराध्ययनसूत्रकी वृत्तिकारक श्रीशांतिसूरिजीने संघाचार चैत्यवंदनमहाभाष्यमें चार थुइ कही है, तथा श्रीजगच्चंद्रसूरि क्रियाउद्धारका कर्ता, तपस्वी, महाप्रभाविक, राणाकी सभामें तेतीस ३३ क्षपणकाचार्योंकों वादमें जीत्या, तपाबिरुद धारक तिनका शिष्य परमसंवेगी, ज्ञानभास्कर, श्रीदेवेंद्रसूरिजीनें लघुभाष्यमें चारथुइ कही है । तथा श्रीबृहद्गच्छैकमंडन श्रीमुनिचंद्रसूरिजी और तिनका
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