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________________ ७० चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ साधुयोंकों एक अहोरात्रिमें सातवार चैत्यवंदना किसतरेंसे होवे सो कहते है ॥ पडि० ॥ एक प्रभातके प्रतिक्रमणेके पर्यतमें, दूसरी तदपीछे श्रीजिनमंदिरमें जाकर करनी, तदपीछे तीसरी भोजन समयमें तदपीछे चौथी भोजन करके पीछे चैत्यवंदना करके प्रत्याख्यान करे, पांचमी संध्याके प्रतिक्रमणेकी आदिमें प्रारंभमें, छट्ठी रात्रिमें सोनेके समयमें, सातमी सूतां उठया पीछे करनी यह साधुयोंके चैत्यवंदन करनेका वखत कह्या । और श्रावकतो जो उभय कालमें प्रतिक्रमणा करता होवे सो तो साधुकी तरें सातवार चैत्यवंदना करे, अरु जो पडिक्कमणा न करे सो पांचवार चैत्यवंदना करे, और जघन्यसें जघन्य तीनवार करे । इस पाठमें पडिक्कमणेकी आद्यंतमें चार थुइकी चैत्यवंदना करनी कही है ॥१॥ इसी तरें श्रीअजितदेवसूरि अर्थात् वादीदेवसूरिजिनका करा चौरासी सहस्त्र (८४०००) श्लोक प्रमाण स्याद्वाद रत्नाकर ग्रंथ है, तिनोकी करी यतिदिनचर्या में भी यह चोशठमी गाथाका पाठ है । पडिक्कमणे चेइहरे, भोयणसमयंमि तहय संवरणे ॥ पडिक्कमण सूयण पडिवो ह, कालियंसत्तहा जइणो ॥६४॥ यह चौशठमी गाथाका अर्थ उपर वत् जानना ॥२॥ इसी तरेंका पाठ प्रतिक्रमणेकी आदिमें चार थुइसें चैत्यवंदन करणेका ३ धर्मसंग्रह, ४ वृंदारुवृत्ति, ५ श्राद्धविधि, ६ अर्थ दीपिका, ७ विधिप्रपा, ८ खरतर बृहत्समाचारी, ९ पूर्वाचार्यकृत समाचारी, १० तपगच्छे श्रीसोमसुंदरसूरिकृत समाचारी, ११ तपगच्छे श्रीदेवसुंदरसूरिकृत समाचारी, तथा औरभी श्रीकालिकाचार्य सूरि संतानीय श्रीभावदेवसूरिविरचित यतिदिनचर्यादि अनेक शास्त्रोंमें पडिक्कमणेकी आद्यंतमें चार थुइसें चैत्यवंदना करनी कही है । यह ग्रंथोकों उल्लंघन करके रत्नविजयजी अरु घनविजयजी जो पडिक्कमणेकी आद्यंतमे चार थुइकी चैत्यवंदना निषेध करते है, और तीन थुइकी चैत्यवंदना करनेका उपदेश देते है । यह इनका मत जैनमतके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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